Friday, 21 October 2016

सिद्ध बाबा बालक नाथ साधना

हिमाचल और उसके आस पास के इलाके को सिद्ध बाबा बालक नाथ का गढ़ माना जाता हैबाबा बालक नाथ जी की जितनी उपासना हिमाचल और उसके साथ लगते पंजाब में की जाती है उतनी शायद किसी और इलाके में नहीं होतीयह पोस्ट भी यहाँ कुछ हिमाचल के भाइयो के कहने पर ही लिख रहा हूँइन बड़े भाइयो की बहुत समय से शिकायत थी कि मै दीवट सिद्ध बाबा बालक नाथ की साधना नहीं दे रहा हूँइसके पीछे एक विशेष कारण है, मैं आप लोगो की धार्मिक भावनाओ का सम्मान करता हूँ और मै यह भी जनता हूँ कि आप सब लोगो की सिद्ध बाबा बालक नाथ जी पर विशेष श्रद्धा है!  मेरे प्यारे भाइयो एक है इतिहास और एक है मिथिहास दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर हैहिमाचल और पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र में केवल मिथिहास प्रचलित है पर सिद्ध 

गोष्टी और सिद्धो की परम्परा इसे नहीं मानतीबाबा बालक नाथ का जन्म पंजाब के नवाशहर में हुआ था!उनकी माता का नाम यशोदा और पिता का नाम दुर्गादत्त थावे भार्गव ब्रह्मण थे!सिद्ध बाबा बालकनाथ का बचपन का नाम दीवट था इसलिए आज भी कुछ लोग उन्हें दीवट सिद्ध बाबा बालकनाथ कहते है!उनके माता पिता ने जब उनकी शादी का फैसला किया तो वे शादी के डर से घर से भाग गए और पूर्वजन्म के संस्कारो से योग की तरफ आकर्षित हुएएक बार उन्होंने गुरु गोरखनाथ जी के दर्शन किये जब उनके पीछे चेलों की लम्बी भीड़ देखी तो हैरान हो गए उन चेलों में कुछ राजकुमार भी थेबाबा बालकनाथ जी ने सोचा इन्हें ही गुरु बनाऊंगा लेकिन वे किसी बालक को अपना शिष्य नहीं बनाते थेबाबा बालकनाथ जी जब उनके दर्शनों के लिए गए तो उन्होंने उन्हें शिष्य बनाने से मना कर दिया और कहा फिर कभी आपको शिष्य बनाने के लिए विचार करेगे!ऐसा कहकर गुरु गोरखनाथ जी आगे चले गए!सिद्ध बाबा बालकनाथ जी माँ भवानी और शिव की सेवा  करते थे एक दिन उन्हें माँ भवानी के दर्शन हुए माँ भवानी ने उन्हें कहा शिवरुपी गुरु गोरखनाथ जी  के शिष्य बनना चाहते हो चिंता करो मै आपको एक रास्ता बताती हूँ!  


एक बार राजा भरथरी ने जब सन्यास धारण किया तो वे दत्तात्रेय जी की शरण में गए और उनसे कहा मै पूर्ण योगी बनना चाहता हूँ और अमर होना चाहता हूँ तब भगवान दत्तात्रेय ने कहा जगत का कल्याण करने के लिए भगवान शिव ने स्वयं गुरु गोरखनाथ रूप में अवतार लिया है आप उनकी शरण में जाये और कहे मै दत्तात्रेय का शिष्य हूँ और आपसे योग सिखने आया हूँ!ऐसा कहकर उनसे दोबारा दीक्षा ले और योग साधना सीखे!  जब भरथरी जी गुरु गोरखनाथ जी से मिले और बताया की मै दत्तात्रेय का शिष्य हूँ तो गुरु गोरखनाथ ने उन्हें आई पंथ में दीक्षित किया और गोरक्ष आखाडा हरिद्वार में जो भरथरी गुफा है उस जगह रहकर भरथरी जी ने तप किया और तीन ग्रंथो की रचना की वैराग्य शतक,श्रृंगार शतक और नीति शतक और आज भी भरथरी जी गुरु गोरखनाथ जी के साथ भ्रमण करते है मतलब गुरु गोरखनाथ जी राजा भरथरी के शिक्षा गुरु हैं आपको भी ऐसा ही करना है आप दत्तात्रेय जी की शरण में जाये!  मै आपको उड़ने की शक्ति प्रदान करती हूँ!  सिद्ध बाबा बालकनाथ जी उड़ते हुए गिरनार पर्वत जा पहुचे और भगवान दत्तात्रेय जी के दर्शन किये और अपनी इच्छा व्यक्त की दत्तात्रेय जी ने उन्हें " नमः शिवाय " इस मन्त्र को जपने की आज्ञा दी!  सिद्ध बाबा बालकनाथ जी वापिस माँ रत्नों की गौये चराने लगे और सारा दिन इस मन्त्र का जाप करने लगे!इसी प्रकार 12 साल बीत गए!एक दिन गौये जमींदारो के खेत खा गयी और जमींदारो ने माँ रत्नों को बुरा भला कहा,माँ रत्नों ने जाकर बाबा बालकनाथ जी से कहा मै तुम्हे 12 वर्ष से रोटिया और लस्सी पिला रही हूँ तुम उसके बदले में गौये भी ठीक से नहीं चराते गौये जमींदारो के खेत खा गयी!  बाबा बालकनाथ जी ने कहा उन जमींदारो के खेत तो हरे भरे है जाकर देख आओ जब उन्होंने खेतो को देखा तो खेत पहले से भी अधिक हरे भरे थे!  माँ रत्नों को अपने कहे पर बहुत पछतावा हुआतब अपने पास खड़े वट वृक्ष की तरफ बाबाजी ने इशारा किया तो उसमे 12 साल की रोटीया और लस्सी थी और उन्होंने माता रत्नों से कहा यह रही आपकी 12 साल की रोटीया और लस्सी और इतना कहकर बाबाजी ने वे स्थान छोड़ दिया!  

एक दिन गुरु गोरखनाथ  जी उस नगरी आये जिस जगह बाबा बालकनाथ जी विराजमान थेतब बाबा बालकनाथ ने विचार किया इनके साथ चमत्कार करूँगा अगर वे मुझे पकड़ने में कामयाब हो गए तो इन्हें अपना गुरु मान लूँगायह सोचकर बाबा बालकनाथ जी उनसे मिलने गए और शिष्य बनाने के लिए प्रार्थना की पहले गुरु गोरखनाथ जी ने उन्हें समझाया और कहा नाथ पंथ बहुत कठिन है खांडे की धार है पर जब वे नहीं मने तो उन्हें शिष्य बनाने के लिए राजी हो गये ,और जब उनके कान छेदन करने वाले थेतब बाबा बालकनाथ जी हवा में उड़ गए!  यह देखकर गुरु गोरखनाथ जी ने अपनी वाम भुजा को बड़ा किया और बाबा बालकनाथ जी को पकड़ कर नीचे उतार लिया और कहा यदि कोई और शंका मन में हो तो वे भी निकाल लो मैंने तुम्हे भागने का मौका दिया था पर तुम नहीं भागे अब जिसे याद करना हो कर लो अब तो तुम्हे शिष्य बनना ही पड़ेगा!  यह सुनकर बाबा बालकनाथ जी ने कहा गुरुदेव आपके सिवा कोई याद करने लायक नहीं है!  आप चाहे बंधन में रखकर कान छेदन कर दे या बिना बंधन केइतना सुन गुरु गोरखनाथ जी ने उन्हें बन्धनों से मुक्त कर दिया और उनके कान छेदन कर दिएआज भी उनके स्थान पर भारी मेला लगता है और हजारो लोगो की मुरादे पूरी होती है,पर कुछ लोगो ने गलत प्रचार किया की बाबा बालकनाथ जी एक सन्यासी हुए हैउन्होंने गुरु गोरखनाथ जी को हरा दिया था!  उनके कानो में मुद्राये नहीं थी और उनका नाथ पंथ से कोई लेना देना नहीं थाउन्होंने यह प्रचार इसलिए किया ताकि बाबा बालकनाथ जी का स्थान उनके हाथो से निकल जाये!यह स्थान उनकी आमदनी का साधन है और लाखो रुपये वे लोग बाबा बालकनाथ जी के नाम से कमाते है!ऐसे लोगो की मिथक कथाये आपस में ही नहीं मिलती!मै इन लोगो से पूछता हूँ यदि बाबा बालकनाथ का नाथ पंथ से कोई लेना देना नहीं है तो उनके पीछे नाथ शब्द क्यों लगाया जाता हैउन लोगो का कहना है वे भगवान दत्तात्रेय जी के प्रमुख शिष्य थेपर भगवान दत्तात्रेय ने आदिनाथ भगवान शिव के कहने से अपने कुछ विशेष शिष्यों को मिलाकर नाथ पंथ की स्थापना की थी और नौ नाथो का संघ स्थापित किया थाइन नौ नाथो में उन्होंने विश्व के श्रेष्ठ संतो को स्थान दिया था यदि बाबा बालकनाथ जी ने नाथ शिरोमणि गुरु गोरखनाथ जी को परास्त कर दिया था तो बाबा बालकनाथ जी को नौ नाथो में भगवान दत्तात्रेय ने स्थान क्यों नहीं दिया?यदि नाथ पंथ से बाबा बालकनाथ जी का कोई सम्बन्ध नहीं है तो चौरासी सिद्धो की परंपरा जो भगवान दत्तात्रेय से चली आ रही हैउन चौरासी सिद्धो में बाबा बालकनाथ जी का स्थान कैसे गया

कुछ लोगो ने तो यहाँ तक कह दिया कि बाबा बालकनाथ जी ने कहा था कि उनके गुरु वे होंगे जो किसी प्रकार का नशा करते हो इसलिए उन्होंने भगवान दत्तात्रेय जी को गुरु बनायापर यह कहना कि भगवान दत्तात्रेय जी कोई नशा नहीं करते थे बिलकुल गलत होगा क्योंकि मदालसा तंत्र में एक जगह यह बात आती है कि भगवान दत्तात्रेय जी अपनी पत्नी के साथ बहुत शराब पिया करते थे और अपनी मस्ती में मस्त रहते थे!" गिरी संप्रदाय " भगवान दत्तात्रेय को इष्ट मानता है और भगवान शिव को प्रधान देवता गिरी संप्रदाय के कुछ संत एक विशेष पूजा में भगवान दत्तात्रेय को शराब चढाते है इसलिए यह कहना कि भगवान दत्तात्रेय जी नशा नहीं करते थे गलत है

कुछ ऐसे महान भक्त भी है बाबा बालकनाथ जी के जिन्होंने यह लिख दिया कि बाबा बालकनाथ जी का जन्म 1500 सन्न के आस पास हुआ हैयह धारणा बिलकुल गलत है क्योंकि वे स्वयं कहते है कि उनका जन्म भरथरी जी के काल में हुआ और यदि उज्जैन का इतिहास देखा जाये तो भरथरी जी और राजा बिक्रमादित्य का जन्म एक ही काल का है!  राजा बिक्रमादित्य का जन्म सातवी शताब्दी के आस पास का है तो राजा भरथरी 1500 सन्न में कैसे गएएक और विशेष तथ्य " छड़ी " नामक एक लोहे का औजार होता है यह लोहे की सांकल जैसा होता हैयह गुरु गोरखनाथ जी ने अपने विशेष शिष्यों को रखने का आदेश दिया था!  इसी प्रकार लोहे की छड़ी " गोगा जाहरवीर " के भक्त भी रखते हैसोचने वाली बात है गुरु गोरखनाथ जी का चलाया यह प्रचलन बाबा बालकनाथ जी तक कैसे पहुच गयागुरु गोरखनाथ जी ने  अपने विशेष शिष्यों के स्थान पर लोहे का खड़ा चिराग जलाने की अनुमति दी थीइस प्रकार के चिराग आपको गोगा  जाहरवीर के मंदिर पर मिल जायेगे तो यह रिवाज़ भी बाबा बालकनाथ जी के स्थानों पर कैसे प्रचलीत हो गयाकुछ भक्तो ने तो यहाँ तक कह दिया के गुरु गोरखनाथ जी के 360 शिष्य थे पर यह गलत है क्योंकि 360 शिष्य भैरोंनाथ जी के थे और भैरोंनाथ जी स्वयं गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थेएक मान्यता के अनुसार गुरु गोरखनाथ जी के 1400 शिष्य थे जो सदैव उनके साथ रहते थे और इनके इलावा कुछ उनके गृहस्थ शिष्य भी थेएक और विशेष बात जब बाबा बालकनाथ जी की पूजा की जाती है तो रविवार का दिन चुना जाता है और रविवार के दिन ही नाथो की पूजा की जाती है और पूजा में 2 रोट बनाये जाते है एक बाबा बालकनाथ जी का एक गुरु गोरखनाथ जी का दत्तात्रेय जी का रोट क्यों नहीं बनाया जाताऐसे और भी बहुत से तथ्य है जो यह बात साबित करते है कि बाबा बालकनाथ जी नाथ योगी थे और गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे पर कुछ लोगो ने झूठी कथाये बनायीं!  इसी प्रकार कुछ झूठी कथाये कबीर पन्थियो ने भी गुरु गोरखनाथ जी के बारे में बनाई जो बिलकुल गलत है!  अपनी इन्ही कथाओ को सच्च करने के लिए उन्होंने बिना कर्ण मुद्राओ के बाबा बालकनाथ जी की फोटो छपाई

हिमाचल और पंजाब के मेरे प्यारे भाइयो यदि मेरी वजह से आपको  दुःख हुआ तो मै माफ़ी मांगता हूँ और आप सब लोगो की धार्मिक भावनाओ का सम्मान भी करता हूँ!  इसी वजह से मै यह साधना नहीं लिखना चाहता था क्योंकि ज्यादातर लोग मिथिहास पर विश्वास करते है पर आप सब लोगो के कहने पर  यह साधना यहाँ लिख रहा हूँ जो मेरे गुरुदेव सिद्ध रक्खा रामजी की कृपा से मुझे प्राप्त हुयी है!जिस प्रकार कान वाले कुछ लोगो को सुनाई नहीं देता क्योंकि वे बहरे होते है उनमे सुनने की शक्ति नहीं होती ठीक उसी प्रकार कानो को सुनने में मधुर लगने वाली प्रत्येक कहानी सच्च हो यह जरूरी तो नहीं!  अब इन तथ्यों को छोड़ साधना की बात करते है!

मन्त्र::-

बालकनाथ बाबा गुफा वालेया तेरी सदा ही जय 
थोडा वालेया तेरी तेरी सदा ही जय 
बालक रिशीया धारी आया शरण तुम्हारी 
जगत गुरु पृथ्वी के धनी
तेरे नाम की ओट
विरध की लाज
नाल हमेती हो तुसी
नाम घुमंडी तुसी हो बनखंडी 
रख बाने की लाज! 



विधि:::-
एक साफ़ सुथरी जगह तलाश करे विशेष रूप से वड़ वृक्ष ढूंढेउसके निचे शिवलिंग की स्थापना करेउसी स्थान पर बाबा बालकनाथ जी का चिमटा और खडाऊ स्थापित करे और घी की ज्योत जगाये और इस मन्त्र की 5 माला रात्रि में करे ऐसा 43 दिन करेयह साधना किसी भी रविवार से शुरू की जा सकती है!हर रविवार को दो रोट लगाये एक बाबा बालकनाथ जी के नाम से और एक गुरु गोरखनाथ जी के नाम से और साथ में दूध लेकर गुरु गोरखनाथ जी और बाबा बालकनाथजी को भोग लगाये!भोग लगाने के बाद बच्चों को बाँट दे!साधना के वीच में ही आपको बाबा बालकनाथ जी का दर्शन हो जायेगाइश्वर आपकी मनोकामना पूरण करे और आप सबको इस साधना में सफलता प्रदान करे!इसी आशा के साथ.......................

जय सद्गुरुदेव !

11 comments

मंत्र में थोड़ा वालिया है या बोड़ा वालिया।

Bhai hume ni pta ki jo kahani hamne pehle suni wo mithya hai ya ye... Pr apki kahani se lagta hai ap haryana k hai jaha Gorakhnath ji puje jate hai... Pr maine tantrik kp wo shabar mantar istemaal krte dekha h jisme wo Gorakhnaath ji ko bulata hai baba balak nath ji ki duhai dekar....baba balaknath to shiv k darshan ho chuke the pehle kayi baar to na wo Gorakh nath ji ko pehchaan paye ki wo shiv roop h aur na Gorakh nath ki wo balak sadharan nhi h kyunki shiv aur gauri unko darshan de chuke the...

App genious ho.jo ithass ko sachai k sath batate ho.jai ho apke pujnea guru g ki .jo app hum jaise logo tak sach dikte ho.
Jai guru dev.

Baba balak ji ki gayatri mantra kya hai kirpya batayein.

agar koi cheez malum nahi toh bolni nahi chahiye....dattatreya sharabi thee yeh aapka kehna agyan ko darshata hai....aapne puran padhe hi nahi hai aadhi adhuri kahani naa chapwaye...jab parshuram ji bhagwan dattatreya ji ki khoj mai aaye unko guru banane tab unhone yahi kiya thaa sharab ka pyaala aur ek sunder aurat ke saath woh waha prakat hue aur parshuram ji se kaha ki aap jaise mahapurush ko mujh jaise mahabhogi ke khoj mai nahi nikalna chahiye taab parshuram ji unke charanomai gir pade aur unse aapni leela band karke unpe krupa karne ki prarthana kii tab bhagwan dattatreya mul swaroop mai aaye yeh asli kahani hai aagyanta wash ghor paap naa karo guru gorakhnath aaj bhi girnaar parvat mai aapne guru dattatreya ji ki gurubhakti mai aur aapne shishyo ko updesh lene mai leen hai yeh bhi ulleekh hajaro jagah prapt hota hai agar sandeh hai toh aapne gurudev se poocho warna kisi siddha adhikari vyakti se bhagwan dattatreya ke bare mai poocho shabri vidhya navnath pant , khechri mudrae aadi saab unse hi aaye hai...isiliye unko guruo ke guru kaha jaata hai machindranath, gorakshnath aur baki saab naatho ke woh aadiguru paad mai virajman hai kisi bhi naath panthi se puch lo

Jo khud Kal bhairav mahakal hai vah guru gorakhnath ke shishya kaise ho sakte hain jo ki Agra Gori sab Kal bhairav mahakal ko puchte Hain to engage mahakal hi sabke guru hi moorakh

Bhai kyu galt bate bta rhe hooo

Sorry sir baba ji janam Gujrat ch junakhare ch hoea c Navasehar ch nahi

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