| | मन्त्र | |
सत नमो आदेश ! गुरूजी को आदेश ! ॐ गुरूजी !
अलख निरंजन कौन स्वरूपी बोलिए !
अलख निरंजन ज्योति स्वरूपी बोलिए !
ओमकारे शिवरूपी, संख्या ने साधरुपी ,
मध्याने हंस रुपी , हंस परमहंस दो अक्षर,
गुरु तो गोरक्ष, काया तो गायत्री ॐ ब्रह्मा,
सोहं शक्ति, शून्य माता ,
अविगत पिता , अभय पंथ , अचल पदवी ,
निरंजन गोत्र , विहंगम जाति ,
असंख्य प्रवर, अनन्त शाखा, सूक्ष्म वेद ,
आत्मज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी -
श्री ॐ गो गोरक्षनाथाय विदमहे -शून्य पुत्राय धीमही, तन्नो गोरक्ष निरंजन : प्रचोदयात !
इतना गोरक्ष गायत्री जाप सम्पूर्ण भया ! श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश ! आदेश !
| | विधि | |
इस साधना को शुक्ल पक्ष के रविवार से शुरू करे और साधना के दौरान घी का दिया जलता रहना चाहिए ! प्रतिदिन इस मंत्र का १०८ बार जप करे , पहले दिन रोट लगायें और साधना में जितने भी रविवार आयें उसमे रोट लगाना न भूले ! रोट की 11 आहुति अग्नि में इस मंत्र द्वारा दें , जप के दौरान अग्नि पर गुग्गल सुलगती रहनी चाहिए ! २२वे दिन दोबारा रोट दे और 11 मीटर भगवा कपडा किसी योगी को दान में दें अथवा किसी धूने पर चढ़ा दें ! साधना के दौरान आसन और कीलन मंत्र अवश्य पढ़ें ! साधना गुरु आज्ञा से ही करें !
जय सदगुरुदेव..................... ...!!
2 comments
Isme Rot ka matlabh samjayiye please... रोट लगायें और साधना में जितने भी रविवार आयें उसमे रोट लगाना न भूले ! रोट की 11 आहुति अग्नि में इस मंत्र द्वारा दें...
अलख निरंजन ओम श्री गोरक्ष नाथाय नमः
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