Thursday, 20 October 2016

कबीर पन्थियो का एक और सफ़ेद झूठ

दो दिन पहले मुझे मेरे एक सहयोगी ने बताया कि किसी ने फेसबुक पर दस महाविद्या साधक परिवार नाम से एक पेज बने है और उस पेज में एक कहानी महाकाल सेविका नाम से लिखी है जिसमे यह लिखा गया है कि गोरखनाथ जी जातिवाद में बहुत विश्वास रखते थे और इस जातिवाद की वजह से उन्होंने रविदास जी के घर का पानी भी नहीं पिया और बाद में बहुत पछताए ! मैंने उस पेज को देखा और उस पर कमेंट किया तो मेरे कमेंट डिलीट कर दिए गए क्योंकि मैंने तथ्यों की बात की ! आइये तथ्यों के आधार पर इस कहानी का मंथन करते है ! लेखक ने कहानी को कुछ इस प्रकार लिखा है
महाकाल सेविका
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सच्चाई
गोरखनाथ जी को एक दिवस इच्छा हो गई कि कबीर साहब से मिला जाये ! कबीर साहब उस समय मे एक ऐसे संत हुये की उनके पास हिन्दू मुसलमान कोई भी हो ! सब समान भाव उनमे रखते थे
और ऐसा ही उस समय के संत समाज मे भी उनसे हर पंथ , हर सम्प्रदाय का महात्मा उनसे भेंट करके प्रशन्न होता था ! अपने प्रोग्राम अनुसार गोरख कबीर साहब के पास पहुंच गये ! कबीर ने उनका बडा आदर सत्कार किया और दोनो महात्माओं मे सत्सन्ग चर्चा चलती रही ! इतनी देर मे कमाली जो कि कबीर की बेटी थी वो गई ! और कबीर साहब से बोली - मैं तैयार हूं ! अब चले !
कबीर साहब ने कमाली का परिचय गोरख से करवाया और कमाली उनको प्रणाम करके बैठ गई ! गोरखनाथ जी ने पुछा कि आपका कहां जाने का प्रोग्राम था ?तब कबीर साहब ने बताया कि हम संत रैदास जी के पास मिलने जाने वाले थे और कबीर साहब यह तो कह नही पाये कि अब आप आगये तो नही जायेंगे , क्योंकी उनका जाना जरुरी था ! अब कबीर साहब बोले - गोरखनाथ जी आप भी हमारे साथ चलें तो बडा अच्छा हो ! रैदास जी बहुत पहुंचे हुये महात्मा हैं ! अब गोरख ठहरे कुलीन नाथ पंथ के महान सिद्ध योगी ! वो भला मिलने जाये और वो भी रैदास से ? ये भी कोई बात हुई ? अरे गोरख के तो उनको दर्शन भी नही हों और ये कबीर साहब का दिमाग कुछ चल गया जो हमसे कह रहे हैं कि रैदास से मिलने चलो ! उनकी क्या जात है ? हम अच्छी तरह से जानते हैं पर कबीर साहब ने जब जोर देकर कहा तो गोरख मना नही कर सके और तीनों पहुंच गये रैदास के घर पर वहां पहुंचते ही रैदास तो बिल्कुल भाव विह्वल हो कर पगला से गये साक्षात कबीर जिसको वो परमात्मा ही मानते थे ! वो उनके घर आया है और साथ मे गोरखनाथ जी, ये वो गोरख जिनका आने का तो सपने मे भी रैदास नही सोच सकते थे ! आज साक्षात उनके सामने और उनके घर पर गये हैं क्योंकी कई बार रैदास ने कबीर को कहा भी था कि एक बार मुझे गोरख नाथ जी के दर्शन करवा दो और आज तो उनकी समस्त इच्छाए पुरी हो रही थी !

साभार- ♥ सच्चाई
जब ये तीनों लोग वहां पहुंचे थे तब रैदास जी अपने नित्य कर्म अनुसार जुते सी रहे थे और इनके पहुंचते ही उसी अवस्था मे उठ्कर अन्दर गये वापसी मे उनके हाथ मे दो गिलास पानी या शर्बत के थे ! उन्होने उसी अवस्था मे एक गिलास कबीर की तरफ़ बढाया और कबीर ने वह गिलास तुरन्त गटागट पी लिया और दुसरे गिलास को उन्होने गोरखनाथ जी की तरफ़ बढाया ! गोरख बोले - नही नही, मुझे प्यास नही है ! मैं अभी रास्ते मे पी कर ही आया हुं ! जैसे हम लोग किसी को चाय के लिये मना करते हैं उसी अन्दाज मे उन्होने पानी पीने से मना कर दिया ! रैदास जी ने बहुत आग्रह किया पर गोरख ने मना कर दिया और अब वही गिलास रैदास जी ने कमाली की तरफ़ बढा दिया ! कमाली ने भी पीकर खाली कर दिया ! असल मे गोरख बहुत बडे सिद्ध योगी थे और वो नाथ पन्थ के महान योगी थे ! उनके मन मे यह बात गई कि ये सीधा साधा चर्मकार और अभी चमडा सीये हुये हाथों से पानी ले आया ! मैं इसके इन हाथो से पानी कैसे पिऊं ? और वैसे भी नाथ पंथ मे उस समय ये अभिजात्यपन था  यानी कि हम श्रेष्ठ खैर साहब अब थोडा बहुत जो भी सत्सन्ग हुआ और फ़िर सब विदा होकर अपने ठिकाने पहुंच गये ! अब इस घटना के बहुत बाद की बात है ! एक रोज गोरख आकाश मार्ग से जा रहे थे नीचे से उन्हे एक महिला की आवाज आई- आदेश गुरुजी .. आदेश गुरुजी .. ( यह नाथ पंथ मे प्रणाम करने का शब्द है ) ! गुरु गोरख नाथ चौंके ? यह कौन है जो मुझे इस तरह देख पा रहा है और वो भी एक औरत ? उन्हे बडा आश्चर्य हुवा ! गुरु गोरखनाथ जी इतने महान सिद्ध थे कि वो अपनी मर्जी से आकाश मे विचरते थे और वो भी अद्रष्य होकर ! उनको इतनी सिद्धियां प्राप्त थी कि उनके लिये कुछ भी असम्भव नही था ! इस घटना के समय वो मुल्तान (अब पाकिस्तान मे ) के उपर से जा रहे थे ! गोरख नीचे आये और उन्होने उस औरत से पुछा कि - तुमने मुझे देखा कैसे ! मुझे अदृष्य होने के बाद कोई भी नही देख सकता ! ये हुनर या सिद्धि तो नाथ पन्थ मे भी किसी के पास नही है ! फ़िर तू कौन ? वो औरत बोली - गुरुजी मैं तो आपको जब भी आप इधर से गुजरते हैं ! तब हमेशा ही देखती हूं ! और हमेशा आपको प्रणाम करती हुं ! पर आप बहुत तेजी से जा रहे होते हैं ! आज आप कम ऊंचाई पर थे तो आपको मेरी प्रणाम सुनाई दे गई ! आप तो मेरे घर चलिये और मेरा आतिथ्य गृहण किजिये ! अब तो गोरख और भी चक्कर खा गये कि अब ये कौन मुझसे बडा सिद्ध पैदा हो गया ? ये सिद्धि तो मेरे पास भी नही है कि मैं किसी अदृय्ष्य चिइज को देख सकूं ! उन्होने सोच लिया कि ये महिला भी कुछ सिद्धि जरुर रखती है ! और आप अपने से छोटे मे तो इन्ट्रेस्ट नही लेते पर बडे को आप यूं ही इग्नोर भी नही करते ! गोरख ने पूछा - माते आपका परिचय दिजिये ! मैं अधीर हो रहा हूं ! वो औरत बोली - गुरुजी आप मुझे नही पहचाने ? अरे मैं कमाली ! याद करिये ! आप हमारे घर आये थे ! कबीर साहब के यहां ! तब गोरख को याद पडा कि हां - ये सही कह रही है ! तब उन्होने पूछा - तुझको यह अदृष्य वस्तुयें कब से दिखाई देती हैं और ये सिद्धि तुमको किसने दी ? कमाली बोली - गुरुजी , मेरे को कोई सिद्धि विद्धि नही दी किसीने ! बस मुझे तो दिखाई देता है ! अब गोरख ने सोचा की शायद कबीर ये सिद्धि जानते होंगे और उन्होने ही इसे ये सिद्धि दी होगी ! अब उन्होने पूछा कि कब से यह वस्तुएं दिखाई दे रही हैं ? कमाली बोली - आपको याद होगा कि आप और कबीर साहब के साथ मैं भी रैदास जी के यहां गई थी और उन्होने एक पानी का गिलास आपको दिया था ! और आपने वो पानी पीने से इनकार कर दिया था और वो गिलास रैदास जी ने मुझे दे दिया था ! बस तब्से ही मुझे सब अदृष्य चीजे दिखाई देती हैं ! भूत प्रेत, जलचर, नभचर सब कुछ दिखाई देते हैं ! मैं शादी के बाद यहां मुल्तान गई क्योन्की मेरी शादी यहां मुलतान मे हुई है और आपको तो मैं अक्सर ही देखती हूं ! जब भी आप इधर से आकाश मार्ग से गमन करते हैं ! अब गोरख नाथ के आश्चर्य का ठिकाना नही रहा ! उनको अब वो रहस्य समझ आया कि क्यूं कबीर उनको रैदास के यहां ले गये थे और क्युं रैदास ने उनको इतना आग्रह किया था ! अब यहां से विदा होकर गोरख तुरन्त कबीर के पास गये और उनसे आग्रह किया कि वो अब रैदास जी के यहां उनको अभी ले चले और कबीर तुरन्त ही उनको लेकर रैदास के पास गये ! रैदास जी ने उनको बैठाया और सत्सन्ग की बाते शुरु कर दी ! अब गोरख का मन सत्सन्ग मे क्या लगता ! उन्होने कबीर को इशारा किया कि अब पानी के लिये बोलो और रैदास जी ने आज पानी का नही पूछा ! तब उनकी उत्सुकता भांप कर रैदास बोले - गोरख नाथ जी आप जिस पानी को पीने का सोच कर आय्रे हैं वो पानी तो मुल्तान गया ! हर चीज का एक वक्त, एक मुहुर्त होता है ! अब वो घडी , वो मुहुर्त नही आयेगा ! अब मैं चाह कर भी वो पानी आपको नही पिला सकता ! तभी से ये कहावत पड गई कि वो पानी मुलतान गया क्योन्कि वो पानी पीकर कमाली मुल्तान चली गई ! सही है हर काम का एक समय एक मुहुर्त होता है ! उसको हम चूक गये तो अवसर हमारे पास नही आता तो इतने सक्षम और सिद्ध संत थे ! रैदास जी भी कि महान योगी गोरख भी उनके पास कुछ लेने आये थे ! सही है भक्ति अपने रन्ग मे अलग ही होती है ! सिद्धियां अपनी जगह, भक्ति मे तो सब कुछ समाहित हो जाता है और अन्त मे सिद्ध भी भक्त ही बन जाता है ! जैसा गोरख के बाद के वचनों से मालूम होता है ! "" हम यहां यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि कई लोगो के मत मे कमाली कबीर साहब की बेटी थी पर कबीर पन्थी मानते हैं कि कबीर ने कभी शादी ही नही की और यह कमाली बाद्शाह की बेटी थी ! जिसको सांप ने काट खाया था और कबीर साहब ने उसको मृत से जिवित कर दिया था ! उसके बाद स्नेह वश वो कबीर साहब को ही जीवन दाता यानी पिता मान कर शादी होने तक उनके साथ ही रही थी और बाद मे शादी कि उम्र होने पर कबीर साहब के कहने पर वो शादी के लिये तैयार हो गई थी एवन उसकी शादी मुलतान के शाही खानदान मे हुई थी ! हमारा उदेष्य किसी भी तरह किसी भी भाई कि भावनाओ को चोट पहुंचाना नही है !
लेखक ने इस कथा को लिखते समय कुछ बातों पर ध्यान नहीं दिया ! शायद उन्होंने कभी संत रविदास जी की जीवनी नहीं पढी और ही गुरु गोरखनाथ के विषय में इतिहास को टटोला
सबसे बड़ी बात गुरु गोरखनाथ जी और संत रविदास जी कभी मिले ही नहीं थे और उनके मिलने का जिक्र इतिहास में कहीं नहीं है ! यह सिर्फ मिथक कथाएँ है जो कबीरपंथीओं ने अपने मत के प्रचार के लिए रची है ! चलिए थोड़ी देर के लिए मान भी लेते है कि संत रविदास जी और गुरु गोरखनाथ जी मिले थे पर क्या गुरु गोरखनाथ जी ने संत रविदास जी से जातिवाद को लेकर भेद भाव किया होगा ? यह  असम्भव है क्योंकि सन्न 1155 में गोगा जाहरवीर का जन्म हुआ वह रानी बाछल और राजा जेवरसिंह के पुत्र थे ! जिस समय जाहरवीर बाबा जी का जन्म हुआ उसी समय एक ब्राह्मण के घर नाहरसिंह वीर का जन्म हुआ ! ठीक उसी समय एक हरिजन के घर भज्जू कोतवाल का जन्म हुआ और एक भंगी के घर रत्ना जी भंगी का जन्म हुआ ! यह सभी गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य हुए ! यह साड़ी घटना सन 1100 और सन 1200 के बीच की है जबकि संत रविदास जी का जन्म सन 1377 में हुआ ! यह विचार करने योग्य बात है कि जब गुरु गोरखनाथ जी ने सन 1200 में शूद्रों को गले लगा लिया तोह सन 1377 के बाद उन में जातिवाद कैसे गया ?? यह वीर काल्पनिक नहीं है , इनका स्थान राजस्थान के जिला हनुमानगढ़ में है

यह साड़ी कथाएं अपने आप को तत्वज्ञानी कहने वाले कुछ पाखंडियों ने इसलिए रची है ताकि वह भोलीभाली जनता को मुर्ख बना उन से मोटा धन चढ़ावे के रूप में ले सके ! इसमें कोई दो राय नहीं कि सबसे अधिक मिथक कथाये संत रामानंद और संत कबीर के अनुयायीयों ने गढ़ रखी है और मेरा यह भी मानना है कि इसमें संत कबीर और संत रामानंद का कोई दोष नहीं ! ऐसे पाखंडी तत्वज्ञानियो ने तो श्रीमद भगवद्गीता के श्लोकों के भी गलत अर्थ निकाल रखे है और इनका कहना है कि भगवन श्री कृष्ण भी कबीर को भजते थे ! आर.एस.एस और वि.हि. जैसी संस्थाएं अभी सो रही है , उन्हें कोई मतलब नहीं के कोई भगवद्गीता का गलत अर्थ निकाले या सही; उनकी नीद तो सन 2014 के चुनाव के पास जाकर ही खुलेगी और वह आयेंगे हमारे दरवाजे पर हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने !! मैं जन्म से हिन्दू हूँ , कोई और अपनी चुप्पी तोड़े या ना तोड़े में इन पाखंडी तत्वज्ञानीयों की एक एक झूठी कहानी का पर्दाफाश कर दूंगा !!

जय सदगुरुदेव ..!!    

1 comments so far

Good. Its true and yo have pur historical facts.


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