एक बार की बात है ऋषि पराशर जंगल से तप करके वापिस आ रहे थे रास्ते में एक नदी थी! नदी देखकर उन्होंने मल्लाह ( जो कश्ती द्वारा लोगो को नदी पार करवाता है ) से कहा मुझे नदी पार करवा दो,मल्लाह उस समय भोजन कर रहा था!मल्लाह ने पराशर ऋषि से कहा इस समय मै भोजन कर रहा हूँ आपको थोडा इंतज़ार करना पड़ेगा!यह सुनकर पराशर ऋषि ने क्रोध से कहा यदि मुझे इसी समय नदी पार न करवाया तो श्राप देकर भस्म कर दूंगा!पराशर ऋषि की बात सुनकर मल्लाह की बेटी ने कहा पिताजी आप भोजन करो मै इन्हें नदी पार करवा देती हूँ! पराशर ऋषि को नाव में बिठाकर वे कन्या नदी पार करवाने लगी तभी पराशर ऋषि उस कन्या पर मोहित हो गए!हजारो बर्ष पराशर ऋषि ने तप किया था,उन्होंने कई बर्षो से किसी कन्या का
दर्शन भी नहीं किया था इसलिए वे अपने आपको रोक नहीं पाए!उन्होंने उस कन्या से कहा मेरा मन आप पार मोहित हो गया है,इसलिए मै आपसे भोग करना चाहता हूँ!उस कन्या ने कहा बिना विवाह के भोग करना पाप है!उस कन्या ने पराशर ऋषि से कहा हम लोग मछली खाते है और आप
तो ज्ञानी पंडित है मेरे मुह से आपको मछली की बदबू आएगी!इतना सुनते ही पराशर ऋषि ने कहा योजन गंधिनी हो जा ऋषि पराशर के इतना कहते ही उस कन्या के मुह से सारी सृष्टि को मस्त कर देने वाली खुशबू आने लगी!यह देखकर उस कन्या ने कहा महाराज पर मै आपके लायक नहीं हूँ बहुत कुरूप हूँ!यह सुनकर ऋषि ने कहा विश्व सुंदरी हो जा ऋषि के इतना कहते ही वे कन्या इन्द्र की अप्सरा के समान सुंदर दिखने लगी!यह देखकर उस कन्या ने कहा हे महाऋषि आसमान से हमें सूर्य देवता देख रहे है!यह सुनकर पराशर ऋषि ने पानी को हाथ में लिया और आसमान में उछाल दिया, बस फिर क्या था?आसमान में कोहरा छा गया!यह देखकर उस कन्या ने पराशर ऋषि से कहा नीचे जल देवता हमें देख रहे है!इतना सुनते ही ऋषि पराशर ने जल में हाथ घुमाया और जल पर काई जम गयी,सारा जल हरा नज़र आने लगा!ऋषि पराशर ने सारी सृष्टि को अपने योग बल से रोक दिया पर अपने मन को नहीं रोका यदि वे अपने मन को रोक लेते तो सारी सृष्टि को रोकने की जरूरत ही न पड़ती! इतने बड़े ऋषि पराशर भी प्रभु की बनाई माया में उलझ गए!कष्टों द्वारा कमाया हुआ अपना योगबल भोग के लिए खर्च करने लगे इसलिए महात्मा बुद्ध कहते है दुःख है दुःख का कारण है!दुख का कारण है इच्छा यदि हम इच्छाओ को रोक ले तो हमें दुख न भोगना पड़े!जिस प्रकार कुछ लोग बहुत अधिक मीठा खाते है और बाद में उन्हें मधुमेह( diabaties ) का रोग हो जाता है!ऐसे लोग अपनी इच्छा से ही दुखी है
यदि वे मीठा खाने की इच्छा न रखते तो उन्हें बीमारी का दुख भी न भोगना पड़ता!यह सारी सृष्टि अपनी
इच्छाओ से ही दुखी है!सीता माता यदि हिरण की इच्छा न करती तो प्रभु राम से वियोग न सहना पड़ता!
रावण यदि माता सीता के साथ भोग की इच्छा न रखता तो उसका पतन न होता!दुर्योधन यदि पूरे राज्य
की इच्छा न करता तो उसका पतन न होता!यह सारी सृष्टि अपने ही कर्मो से दुखी है!किसी को सुंदर प्रेमिका
चाहिए यदि प्रेमिका नहीं मिली तो उन्हें दुख होता है पर यदि वे प्रेम की इच्छा का ही त्याग कर दे तो उन्हें दुख
हो ही नहीं सकता!गीता में भगवान कृष्ण भी ऐसा ही कहते है,कुछ लोग इन्द्रियों को हट्ठ पूर्वक ऊपर से रोक लेते है पर मन से उस इच्छा का स्मरण करते रहते है!ऐसे लोगो को भगवान श्री कृष्ण ने दम्भी कहा है!जो पाप
हम मन से करते है वह सही मायने में पाप है!वाममार्गी साधको ने इसका एक उपाय निकाला था उन्होंने कहा
जब तक मन तृप्त न हो जाये तब तक भोग करो मास खायो और मदिरा पियो और कहीं पाप पुण्य का विचार
मन में न आ जाये इसलिए यह सब मंदिर में बैठकर करो!ऐसा ही भगवान बुद्ध कहते है मन यहाँ जाता है जाने दो पर मन के पीछे स्वयं न जाओ यदि मन एक गुलाब जामुन की इच्छा करता है तो उसे सौ गुलाब जामुन खिलाओ! उसे इतना खिलाओ की दोबारा वे गुलाब जामुन की तरफ देखना भी पसंद न करे!आज के युवा साधको की इच्छा परी साधना और अप्सरा साधना की है,किन्तु वे परी या अप्सरा की सिद्धि नहीं चाहते,उन्हें तो केवल एक सुंदर प्रेमिका चाहिए!उनका ध्यान अप्सरा साधना पर नहीं होता केवल अप्सरा के सौंदर्य पर होता है!जिसके फलस्वरूप वे असफल होते है और साधना को दोष देते है!ऐसे साधक यदि सिद्धि की इच्छा का मन से त्याग करदे और केवल गुरु आज्ञा और अपना कर्म मानकर साधना करे तो उन्हें सिद्धि अवश्य मिलेगी!गुरु गोरखनाथ और बाबा नानक का भी ऐसा ही मानना है!इच्छाओ का दमन करने वाला ही जीवन मुक्त है और सभी सिद्धिया जीवन मुक्त साधक के आगे हाथ बांधे खड़ी रहती है इसलिए सिद्धि की इच्छा छोड़ दो केवल साधना पर ध्यान दो कामयाबी आपकी चरणदासी बन जाएगी प्रभु आप सबकी इच्छाए पूरी करे!
जय सदगुरुदेव!
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