Thursday 20 October 2016

महाऋषि वाल्मीकि साधना

एक बार सभी ऋषि मिलकर ब्रहमऋषि विश्वामित्र जी की स्तुति करने लगे और कहने लगे महाराज आपसे ज्ञानवान कोई नहीं आप सर्वश्रेष्ठ है ! इस पर विश्वामित्र जी बोले मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया कि आप सब मुझे श्रेष्ठ कहे ! विश्वामित्र जी के वचन सुनकर सभी ऋषियों ने कहा हे ब्रहमऋषि जिस राम का सारी सृष्टि ध्यान करती है वह रामजी भी आपके शिष्य है इसलिए आप श्रेष्ठ है ! यह सुनकर विश्वामित्र जी ने संत सभा में बैठे ऋषि वशिष्ट जी की तरफ इशारा कर कहा , मुझमें ऐसा कोई गुण नहीं कि रामजी मेरे शिष्य बने यह सब वशिष्ट जी की कृपा है यदि वसिष्ठ जी उन्हें मेरे पास भेजते तो वह मुझे गुरु कभी स्वीकार करते इसलिए वह ही सर्वश्रेष्ठ है ! विश्वामित्र जी के ऐसे वचन सुनकर वशिष्ट जी ने कहा हे ऋषियों विश्वामित्र केवल मुझे सम्मान देने के लिए ऐसा कह रहे है , श्रेष्ठ तो महाऋषि वाल्मीकि जी है जिन्होंने राम जन्म से हजारो वर्ष पहले रामायण की रचना कर दी ! 


जब महापंडित रावण सीता माता का अपहरण कर उन्हें ले गए तब रामजी विलाप करने लगे और पेड़ पत्तो से लिपट कर रोने लगे , उस समय एक ऋषि ने उनसे पूछा यह कौन है और क्यों रो रहे है ? इस पर लक्ष्मण जी ने कहा यह विष्णु जी के अवतार दशरथ जी के पुत्र रामचंद्र जी है , इनकी पत्नी को रावण उठाकर ले गए है इसलिए यह रो रहे है ! उस ऋषि ने कहा यदि पत्नी से इतना प्रेम था तो इस भयानक वन में आये ही क्यों ? यह सुन लक्ष्मण जी ने कहा राक्षसों का संहार करने के लिए इन्होने अवतार लिया है ! उस ऋषि ने कहा क्या वैकुण्ठ में बैठे बैठे राक्षसों का संहार नहीं कर सकते थे ? यह सुनकर रामजी ने कहा राक्षसों का संहार तो मैं वैकुण्ठ में बैठे बैठे भी कर सकता था पर वाल्मीकि जी ने लिखा था कि रामजी का अवतार होगा और रावण का उनके हाथों उद्धार होगा , उनकी लिखी बातों को काटने की क्षमता मुझमे नहीं है !

जब लव कुश ने राम जी की सारी सेना को मूर्छित कर दिया तो भगवान् राम जी ने स्वयं वाल्मीकि आश्रम की यात्रा नंगे पाँव की और उस स्थान का नाम राम तीर्थ पड़ गया ! भगवान् राम जी ने रामायण में स्वयं वाल्मीकि जी को त्रिकाल ज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी और ओमकार स्वरुप कहकर उनकी स्तुति की है ! भगवान् राम ने उन्हें अविनाशी ईश्वर का अंश कहा हैइसी प्रकार तुलसीदास ने भी कहा है -

"
तुम त्रिकाल दर्शी मुनि नाथा , विश्व विद्र जिम तुमरे हाथा "

अर्थात - हे वाल्मीकि जी आप तीनो कालों का ज्ञान रखते है और यह सारी सृष्टि आपके हाथ में एक बेर के समान है !

जब लव और कुश ने राम जी की पूरी सेना को मूर्छित कर दिया तब सीता माता के प्रार्थना करने पर उन्होंने मंत्र शक्ति द्वारा अमृत का निर्माण किया ! वह अमृत सारी सेना पर छिड़क दिया और सारी सेना जीवित हो गयी ! उन्होंने वह अमृत दुरूपयोग के डर से बेर के पेड़ो की जड़ में दबा दिया ! जिस जगह वह अमृत दबाया उस जगह सिक्खों का धार्मिक स्थल हरमंदर साहिब सुशोभित है ! आज भी हरमंदर साहब के पवित्र तालाब में नहाने से लोगों के रोग दूर हो जाते है ! अमृत दबाने के कारण ही इस शहर का नाम अमृतसर पड़ गया ! कुश को उसके पिता का राज्य अयोध्या मिला और लव ने अपने लिए लव्हर नगर बसाया जो आज के समय का लाहौर है और पकिस्तान के पंजाब में स्थित है ! 


भगवान् वाल्मीकि जी को हम आदि कवि के रूप में जानते है परन्तु तंत्र के क्षेत्र में भी उनका स्थान बहुत ऊँचा है ! वीर साधना में बार बार असफल होने वालों को वाल्मीकि जी की कृपा प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि माना जाता है कि सभी वीर हनुमान जी के अधिकार में है , और हनुमान जी राम जी के आधीन है और स्वयं रामजी वाल्मीकि जी के आधीन है ! वाल्मीकि जी की कृपा से व्यक्ति अनेकों प्रकार की विद्या प्राप्त कर सकता है ! वाल्मीकि जी कि कृपा प्राप्त करने के लिए उनके चार कडो का जाप किया जाता है ! उस गुप्त कड़ा साधना को यहाँ लिखना मैं ठीक नहीं समझता ! आप लोगो के लिए यह साधना जो आज मैं लिख रहा हूँ यह अब तक गुप्त थी और केवल गुरु शिष्य परम्परा से ही आगे बढती रही है ! वाल्मीकि जी के मुख्य चार कड़े है ; एक सतयुग दूसरा त्रेतायुग तीसरा द्वापर और चौथा कलयुग का पर यह बहुत लम्बा क्रम है ! आप लोगो के लिए यह दुर्लभ साधना प्रस्तुत है जो एक बार करने पर अनेक प्रकार की सिद्धियाँ देती है !


|| 
मंत्र  ||उठी माई मैनावंती सुतिये बाबे बाले लिया अतार 
छेड़ा छिड़ीयां कुंभ चो खवाजे सुनी पुकार
डेरे हाजी खां दे लाटा जलन आगास
खुइयों मच्छ छिगड़े, उड़ उड़ मंगन मास 
होम दियां न्यू न्यू करां सलाम
उतरीया बन तपस्सीयों केडे कुल्ले दा सवार
मुँह कड़ीयाले सार दें आन लथे दरबार 
अडो अडी बैठके लिया पीर मना 
चले मन्त्र फुरे वाचा देखुं बाबा बाल्मीक स्वामी ढेरी वालेया तेरी हाजरी का तमाशा
!

||
विधि ||इस साधना को किसी भी रविवार या पूर्णिमा से शुरू कर सकते है ! हर रोज देसी घी का दीपक जलाये और धू अगरबत्ती जलाने के बाद अग्नि पर गुगल सुलगाते रहे और इस मन्त्र का सवा दो घंटे जाप करे ! ऐसा ४१ दिन करे ! हर रोज हलवे का भोग वाल्मीकि जी को लगाये ! अंतिम दिन लाल रंग का चोला किसी साधु को दान दे ! 

इस साधना में वाल्मीकि जी के बिम्बात्मक दर्शन भी हो जाते है ! वाल्मीकि उत्सव की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ !! 

जय सदगुरुदेव !!

1 comments so far


CommentComment

Copyright © Aayi Panthi Nath All Right Reserved
Designed by Arlina Design | Distributed By Gooyaabi Templates Powered by Blogger