सूर्य भगवान से सूर्य वंश शुरू हुआ और इसी वंश में राजा रघु का जन्म हुआ ! राजा रघु बहुत बड़े ईश्वर भक्त थे , उन्ही के नाम पर इस वंश को रघु वंश कहा गया ! इसी वंश में भगवान विष्णु ने
रामचंद्र जी के रूप में अवतार लिया ! भगवान् रामचंद्र जी ने एक धोबी के ताना मारने पर माता सीता को घर से निकाल दिया ! अहा ! कितना महान है हमारा पुरुष प्रधान भारत देश , इस देश में माँ जगदम्बा भी दुःख भोगती रही और आज भी यह परंपरा हमारे भारत देश में कायम है ! हमारा भारत देश प्रेम विवाह की अनुमति नहीं देता जिसे शास्त्रों में गंधर्व विवाह कहा गया है पर अपनी पत्नी को दुःख देने का बिलकुल विरोध नहीं करता ! शायद इसी कारण से भगवान रामचंद्र जी को चौदह कला सम्पूर्ण कहा जाता है पर भगवान् श्री कृष्ण जी को सोलह कला सम्पूर्ण कहा जाता है!
जब माता सीता को भगवान् रामचंद्र जी ने घर से निकाल दिया तो माता सीता ने महाऋषि वाल्मीकि जी के आश्रम में शरण ली , इसी स्थान माता सीता के दो पुत्र हुए ! एक का जन्म माता सीता के गर्भ से हुआ था और दुसरे पुत्र का जन्म महाऋषि वाल्मीकि जी के चमत्कार से हुआ था ! इन दोनों ने रघु वंश को आगे बढाया ! इन पुत्रो का नाम लव और कुश था ! कुश के वंशज वेद पाठी हुए उन्हें वेदी कहा गया और दुसरे भाई लव के वंशज सोढ़ी कहलाये ! वेदीयो के वंश में सिक्खों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ ! गुरु नानक देव जी साक्षात ईश्वर थे , उन्होंने धर्म में फैले हुए पाखंड की निंदा की और जनेऊ धारण करने से भी मना कर दिया और कहा ईश्वर उन्हें मिलता है जो मन से निर्मल होते है ! जनेऊ का ईश्वर से कोई लेना देना नहीं , उन्होंने चार वर्णों की व्यवस्था को हिला कर रख दिया और कहा ईश्वर न ब्राह्मणों को मिलता है न शुद्रो को ईश्वर तो उन्हें मिलता है जो ईश्वर का भजन करते है ! उन्होंने हिन्दू मुसलमानों को एक समान समझा और कहा सब एक ही ओमकार की संतान है !
एक बार गुरु नानक देव जी मक्का गए ! गुरु नानक देव जी ने मक्के की तरफ पैर कर दिए , वहां के काजी ने गुरु नानक देव जी से आपके पैर मक्के की तरफ है , इस पर गुरु नानक देव जी ने कहा जिस तरफ आपका मक्का नहीं है मेरे पैर उस तरफ कर दीजिये ! काजी ने गुरु नानक देव जी के पैरो को उठा कर दूसरी दिशा में घुमा दिया , और ऐसा करते ही क्या देखा कि मक्का भी उसी दिशा में घूम गया ! काजी ने जिस दिशा में भी नानक जी के पैरो को घुमाया , मक्का भी उसी दिशा में घूम गया ! गुरु नानक देव जी ने काजी से कहा ईश्वर तो हर जगह है , ठीक उसी प्रकार आपका मक्का भी हर जगह है ! एक बार गुरु नानक देवजी की भेंट पंजाब के बटाला में सिद्ध चरपटनाथ जी से हुयी ! दोनों में गोष्टी हुयी, सिद्ध चरपटनाथ जी गोष्टी में हार गए और गुरु नानक देवजी की जीत हुयी ! सिद्ध चरपटनाथ जी ने गुरु नानक देव जी से कहा मैं आपके घर अपने एक सिद्ध के साथ पुत्र रूप में जन्म लूँगा ! भादो शुकल नवमी के दिन सिद्ध चरपटनाथ जी ने गुरु नानक देवजी के घर पुत्र रूप में जन्म लिया , जन्म से ही उनके कान में मॉस की एक मुद्रा बनी हुयी थी और जन्म के बाद उनके दुसरे कान में भी मुद्रा डाल दी गयी और उनका नाम श्री चन्द्र रखा गया !
बाल्यकाल से भगवान श्री चन्द्र जी ईश्वर भक्ति में लीन रहते और जब गुरु नानक जी ने गद्दी गुरु अंगद देव जी को सौप दी तो बाबा श्री चन्द्र जी ने अपना अलग पंथ चलाया , इस पंथ को उदासीन पंथ कहा जाता है ! यह पंथ नाथ सम्प्रदाय से बहुत मिलता-जुलता है , उदासीन सम्प्रदाय के संत भी नाथ सम्प्रदाय की तरह धुना लगाते है और भांग सुल्फा आदि का सेवन करते है ! इस पंथ और नाथ पंथ में एक ही अंतर है , कि नाथ पंथ के संत दोनों कान में मुद्रा धारण करते है पर उदासीन सम्प्रदाय के संत एक ही कान में मुद्रा धारण करते है ! मैंने बाबा श्री चन्द्र सम्प्रदाय में रहकर अनेक साधनाएँ सीखी ! उदासीन सम्प्रदाय का मानना है कि गुरु नानक देव जी भगवान् विष्णु के अवतार थे और लक्ष्मी चन्द ( नानक जी के छोटे पुत्र ) भगवान् ब्रह्मा के अवतार थे , वही स्वयं बाबा श्री चन्द्र जी शिव स्वरुप थे ! श्री चन्द्र नवमी के अवसर पर मैं यहाँ भगवान् श्री चन्द्र जी की साधना दे रहा हूँ !
इस साधना से भगवान् श्री चन्द्र जी की कृपा प्राप्त होती है और उनके दर्शन होते है !
|| आसन जाप ||
ॐ गुरुजी आसन वर्मा आसन इंद्र आसन बैठे गुरु गोविन्द ,
काण कामनी अंग मृगशाला उपर बैठे श्री चंद बाला ,
आसन बैठ जाए संताप जन्म जन्म के उतरे पाप ,
थल्ले धरती ऊपर आकाश पिंड पराश सतगुर के पास ,
जो न जाने आसन का जाप उसका मुख देखे ता लग्गे पाप ,
करो आसन का जाप रहो गुरु नानक जी के दास ,
रहो गुरूजी के दास ,
नानक नाम चढ़दी कलां तेरे भने सरबत दा भला !
|| धूणा जाप ||
ॐ पुरी राम से आई, आदि पुरख ने आग चलाई
धूणा कहे तू मुझको ताप, हरख शोग नहीं मन में राख
आओ सिद्धों सेको पीठ , अलख निरंजन बैठा डीठ
धूणा कहे जो मुझको ध्याये दुई सीधी आग न लाए
धूणे का अंतर सम्पूर्ण भाया !
|| मंत्र ||
ॐ श्री चंद्राये नमः
|| विधि ||
सबसे पहले एक हवन कुंड बनाये ओर उस हवन कुंड में पांच गोबर के उपले लगाये ! उन उपलों के मध्य में एक पानी वाला नारियल रखे ओर थोडा सा गाय का दूध पांच प्रकार के मेवे ओर कपूर डालकर आग लगा दे ओर आग लगते समय धूना मन्त्र का जप करें ! धूने के दाहिने तरफ एक लोहे का चिमटा गाड दे मतलब जब आप आसन पर बैठे तो चिमटा आपकी दाहिनी तरफ होना चाहिए ! पहले दिन धूना जलने के बाद धूना बुझने न दे , मतलब धूना ४१ दिन तक सुलगता रहना चाहिए ! अधिक अच्छा होगा अगर आप किसी संत से धूने कि विधि सिख ले ! स्त्रिया यदि यह साधना करे तो भूल कर भी धूना न जलाये ! केवल आसन जाप और मन्त्र का जप करें !
प्रतिदिन धूने के पास धूना मन्त्र सुबह शाम जपे और हररोज शाम को धूने वाली अग्नि में गूगल की ११ आहुति दे !
3 comments
Brihaspat ji ke darshan sadhna kripa please dijiye
Brihaspat ji ke darshan sadhna kripa please dijiye
Guru g shamshan sadna k bare me btaye
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