Thursday, 20 October 2016

नारायण दत्त श्रीमाली उर्फ़ निखिलेश्वरानंद के पाखण्ड का पर्दाफाश - भाग २

पाखंड के विरोध में आप लोगो ने मेरा भरपूर साथ दिया और इस विषय में आप लोगो के सन्देश भी मिले ! आइये इस पाखंडी नारायण दत्त श्रीमाली द्वारा फैलाये पाखंड पर और चर्चा करे ! मेरे इस लेख के बाद मध्य प्रदेश के एक अनजान व्यक्ति ने तांत्रिक सिद्धियाँ नामक पुस्तक भेजी और कहा इसका भी पर्दाफाश करे ! आइये इस पुस्तक पर चर्चा करे , इस पुस्तक को मैंने बड़े ध्यान से पढ़ा और यह एक काल्पनिक उपन्यास जैसा लगा ! इसे पढ़कर मुझे अलिफ़ लैला के किरदार याद गए ! इस पुस्तक का सम्पादन योगी ज्ञानानन्द ने किया है और इस पुस्तक में  नारायण दत्त श्रीमाली का बहुत महिमामंडन हुआ है और उन्हें एक सिद्धपुरुष और सर्वश्रेष्ठ तांत्रिक दर्शाया गया है !

1.  पुस्तक की शुरुवात में एक सम्मलेन का जिक्र आया है जिसमे तरह तरह के तांत्रिकों और सिद्धों ने भाग लिया और उनमे नारायण दत्त श्रीमाली भी थे ! इस सम्मलेन का स्थान कामख्या बताया गया है ! यदि लेखक की माने तो नारायण दत्त श्रीमाली को सभी प्रकार की कृत्या सिद्ध थी ( पृष्ट 27 ) ! आईये इनके सम्मलेन की सच्चाई जाने...

इस विषय पर हमने उन तांत्रिकों से संपर्क किया जो पिछले कई सालों से कामख्या में साधनारत है और वहाँ होने वाली गतिविधियों से परिचित है ! उनके अनुसार वहाँ कभी ऐसा सम्मलेन हुआ ही नहीं , यह केवल एक कपोलकल्पित कथा है और जिन काल्पनिक पात्रों के नाम इस सम्मलेन के विवरण में दिए गए है उनमें से अधिकांश नामों के अस्तितत्व से कामख्या के साधकों ने इनकार कर दिया है !  इस सम्मलेन के चित्र जोकि पुस्तक में दिखाए गए है वह भी केवल नारायण दत्त श्रीमाली के ही है , बाकी के किसी एक भी साधक या तांत्रिक का चित्र नहीं है ! लेखक के अनुसार सभा का अध्यक्ष ऐसा तांत्रिक होना चाहिए जो सभी मार्गों में श्रेष्ठ हो - वह वाममार्ग में भी श्रेष्ठ हो और मान्त्रिक क्रियायों में भी , तो क्या नारायण दत्त श्रीमाली वाममार्गी थे ? तो उन्होंने पञ्च-मकार का सेवन भी किया था और मांस, मदिरा, मीन, मुद्रा और मैथुन आदि क्रियाएं भी की थी ? यदि की थी तो उनके शिष्य ऐसी क्रियायों की निंदा क्यों करते है ? और यदि उन्होंने ऐसी क्रियाएं नहीं की थी तो वह वाममार्गी कैसे हो सकते है ? मेरे पिछले लेख के प्रश्नों की तरह इस प्रश्न का उत्तर भी शायद कोई नहीं दे पायेगा क्योंकि कोई भी व्यक्ति सभी मार्गों में श्रेष्ठ नहीं हो सकता

 2.  पुस्तक में नारायण दत्त श्रीमाली ने अपनी पत्नी के नाम पत्र लिखा है ( पृष्ट 66 ) और केवल एक नहीं ऐसे तीन पत्र इनके द्वारा लिखे गए है ! पृष्ट 90 पर पहुँचते पहुँचते आपको स्वयं ही यह अनुभव होगा की यह पत्र नहीं कोई कॉमेडी सर्कस है क्योंकि पृष्ट 90 से श्रीमाली ने अपनी पत्नी का पक्ष रखना शुरू किया और कई पृष्ठों तक उनकी पत्नी का पक्ष ही चलता रहा जिसमे उन्होंने खुद का ही ( नारायण दत्त श्रीमाली ) का महिमामंडन किया

3. इस पुस्तक के पृष्ट 115 को ध्यान से पढे ! इस पृष्ट पर सिद्धाश्रम के तथाकथित संस्थापक स्वयं सच्चिदानंद परमहंस दोबारा एक अज्ञात स्थान से एक पत्र नारायण दत्त श्रीमाली को लिखा गया है ! आईये इस पत्र पर विचार करते है...

यदि नारायण दत्त श्रीमाली के शिष्यों की माने तो साचिदानंद परमहंस सिद्धाश्रम के संस्थापक है और योगीयों में उनका स्थान सर्वोच्च है और नारायण दत्त श्रीमाली उनके शिष्य है और सर्वकला सम्पूर्ण है ! नारायण दत्त श्रीमाली सिद्धाश्रम के प्रवक्ता है ! कल्पना कीजिये क्या सिद्धाश्रम के योगी आपस में बातचीत के लिए पत्र-व्यवहार करते होंगे ? सिद्धाश्रम के योगी तो ध्यान द्वारा किसी को भी सन्देश भेज सकते है जिसे आधुनिक भाषा में टेलीपेथी कहते है ! क्या इन दोनों योगीयों को ध्यान द्वारा सन्देश भेजना नहीं आता था ? क्या नारायण दत्त श्रीमाली समर्थ नहीं थे ध्यान द्वारा सन्देश भेजने में या सच्चिदानंद समर्थ नहीं थे ध्यान द्वारा सन्देश भेजने में ?

4. इस पुस्तक के पृष्ट 148 पर कर्ण-पिशाचिनी की साधना विधि का वर्णन है ! लेखक के अनुसार नारायण दत्त श्रीमाली ने यह साधना एक ज्योतिषी को सिखाई थी और इस साधना को मनुष्य की हड्डियों की माला की आवश्यकता है और पृष्ट नो. 151 पर लेखक के अनुसार माला में 54 मनके होने चाहिए और इस साधना में साधक को अपने ही मल-मूत्र का सेवन करना पड़ता है !

तो क्या नारायण दत्त श्रीमाली द्वारा बताई हुई यह साधना उन्होंने स्वयं भी की थी ? यदि की थी तो क्या उन्होंने भी अपने मल-मूत्र का सेवन किया था ? यदि यह साधना उन्होंने नहीं की थी तो  मैं यह जानना चाहूँगा कि इस साधना का वर्णन किस तंत्र ग्रन्थ में है और क्या नारायण दत्त श्रीमाली ऐसी साधनाएं भी बता देते थे जो उन्होंने कभी स्वयं की ही नहीं ?

 5.  इस पुस्तक के पृष्ट 166 को ध्यान से पढे ! इसमें सम्मोहन साधना का वर्णन है ! पृष्ट 172 पर भैरवी मन्त्र का वर्णन किया गया है !
यदि तंत्र शास्त्रों को माने तो भैरवी साधना बिना चक्र-पूजन के नहीं हो सकती और इसमें पांच-मकार अनिवार्य होते है तथा जिस भैरवी का इस्तेमाल होता है वह भी अक्षत होनी चाहिए क्योंकि तंत्र-शास्त्रों में भगवान् शिव-शक्ति संवाद है और शिव-शक्ति संवाद के अनुसार ऐसी साधनाएं कौल मार्ग के बिना सिद्ध नहीं हो सकती और यदि इस साधना का वर्णन किसी तंत्र शास्त्र में है तो वह मैं जरुर पढना चाहूँगा !

6. पृष्ट 177 को ध्यान से देखे, इसपर अघोर गौरी साधना का वर्णन है !
सबसे बड़ी बात देवी माँ जगदम्बा का गौरी स्वरुप वैष्णव है और माता का यह स्वरुप अघोर है ही नहीं तो माँ अघोर कैसे हो सकती है ? पृष्ट 178 पर इन्होने अघोर विवाह मंत्र लिखा है ! यहाँ विचार करने योग्य बात यह है कि जो मंत्र इन्होने यहाँ लिखा है वह माँ गौरी का मंत्र है ही नहीं , वह सैयाद कमाल खां जी का मंत्र है ! हैरानी की बात है कि क्या सिद्धाश्रम के योगी भी ऐसी गलतियाँ कर सकते है ?

 7.  पृष्ट 180 को ध्यान से देखिये इसपर काल ज्ञान मंत्र का वर्णन है
लेखक के अनुसार इस मंत्र की प्रतिदिन 21 माला फेरनी है और एक जगह लेखक ने यह लिखा है कि सिद्धाश्रम स्थित गुरु की आज्ञा के बिना यह मंत्र किसी को नहीं दिया जाता तो क्या सिद्धाश्रम स्थित गुरु की आज्ञा से ही यह मंत्र यहाँ पुस्तक में छापा गया है

यह मंत्र इतना लम्बा है कि दो पृष्ठों पर लिखा गया है और जिस साधक की यह कथा है उसके अनुसार वह इस मंत्र को सूर्योदय के समय शुरू करता था और रात्रि 11 बजे उसकी साधdoना समाप्त होती थी ! इस मंत्र में अनेकों बीज मन्त्रों का प्रयोग किया गया है और संस्कृत के इस मंत्र को एक बार बोलने में लगभग दो मिनट लग जाते है पर फिर भी हम यह मान लेते है कि एक बार मंत्र जपने में साधक 1 मिनट लगायेगा ! इस हिसाब से एक माला में लगभग 108 मिनट लगेंगे और 21 माला को 2268 मिनट ( 37.8 घंटे ) का समय चाहिए मतलब यह साधना किसी भी हालत में एक दिन में पूर्ण हो ही नहीं सकती !

अब प्रश्न उठता है कि नारायण दत्त श्रीमाली ने क्या यह साधना पूर्ण की थी ? यदि की थी तो जिस वक़्त उनके घर पर आयकर विभाग का छापा पड़ा तब काल ज्ञान कहा चला गया था ? और यदि उन्होंने यह साधना नहीं कि थी तो क्या वह बिना किये ही साधना लोगों को बांटे जा रहे थे ?

8.  इस पुस्तक की बात छोड़िये , निजी जीवन में भी उन्होंने स्वयं की तुलना ईश्वर से की और स्वयं को ईश्वर साबित करने का प्रत्यन किया , इस निचे दिए हुए लिंक को ध्यान से देखिये कि कैसे यह अपने आप को ईश्वर साबित करने का प्रत्यन करने की कोशिश कर रहे है और इनके शिष्य भी अन्य देवी देवताओं की तस्वीरों पर इनका चित्र बनाकर इन्हें ईश्वर साबित करने पर तुले है !

 9. केवल इतना ही नहीं इन्होने अपने नाम के बीज मंत्र की भी रचना कर रखी है और इनके अनुसार "नीं" बीज नारायण दत्त श्रीमाली का बीज मंत्र है ! यदि इनके शिष्यों की माने तो "नीं" बीज सहस्त्रार चक्र का अंतिम बीज मंत्र है ! जबकि यदि योग मार्ग की माने तो पंच तत्वों के बीज मंत्र नीचे के पांच चक्रों के बीज मंत्र है और आज्ञा चक्र का बीज मंत्र "" है, इससे आगे केवल ध्यान की अवस्थाए है जिनमे सुन्न और महासुन्न आदि अवस्थाए भी है ! जब इन अवस्थाओं में ना ध्वनि होती है ना ही रोशनी ( ऐसा योगीयो का मानना है ) तो बिना ध्वनि के इनका स्व-रचित बीज मंत्र कैसे काम कर सकता है ? और इनके इस बीज मंत्र का वर्णन किस योग-शास्त्र अथवा तंत्र-शास्त्र में है ?

10. इन्होने स्वयं का ही महिमामंडन करने के लिए स्वयं का ही निखिल स्तवन, निखिल कवच, आदि की रचना ही कर रखी है ! यहाँ सवाल यह उठता है कि निखिलेश्वरानद ने स्वयं अपना ही प्रचार प्रसार स्त्रोत्र आदि रचकर क्यों किया ? अपने गुरुदेव सच्चिदानंद का क्यों नहीं ? सच्चिदानंद से सम्बंधित ही कोई तस्वीर है , ही उनका कोई इतिहास !

11.  इनका एक चित्र है जिसे कहा जाता है कि यह नारायण दत्त श्रीमाली के संन्यास रूप का चित्र है और यह लोग उस चित्र को सिद्धाश्रम का चित्र बताते है ! मैं केवल उस फोटोग्राफर से मिलना चाहता हूँ जिसने सिद्धाश्रम जाकर इनका फोटो खिंचा है ! वास्तव में इनके संन्यास रूप का कोई चित्र नहीं बल्कि यह एक कम्पुटर-निर्मित चित्र है जिसपर दाढ़ी और मुछ लगा दी गयी है !

मेरी पिछली पोस्ट के बाद मुझे बहुत लोगों ने संपर्क किया - फ़ोन, ईमेल, मेसेज आदि द्वारा संपर्क किया और उनमे से अधिकांश ऐसे है जो इनके धोखे के शिकार हुए है और खिलाफ कार्यवाही करना चाहते है

मेरी आप सभी लोगों से अपील है कि इनके पाखंड के जाल में जो कोई भी फंस चुके है वह कृपया हम लोगों से समपर्क करे ताकि इनके पाखंड का अधिक से अधिक पर्दाफाश हो सके !

2 comments

guru g mai baba balak nath g ka bhakat hu jo apne baba ji ki sachai btai hai mai us se bahut haran hu mane baba g ki bahut bhakti ki hai lekin baba g na to mere samñe aye hai aur na he sawpan me aye hai main unke darshan krna chachta hu aur logo ka bhala krna chachta hu pls muje sukhjindersingh272727@gmail.com per contact kare ja mere whatsapp 8360743534 par contt.kare apki bhut kirpa hugi

बिल्कुल सही बता रहे हो सर् आप बहुत सालो से ठगी का कारोबार करते आ रहे है ये लोग


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