ज्योतिष शास्त्रों ने राहु को एक छाया ग्रह माना है ! ज्योतिष अनुसार सूर्य से अधिक मंगल क्रूर है और मंगल से अधिक शनि क्रूर है परन्तु राहू शनि से भी अधिक क्रूर है !
ऐसा देखा गया है कि राहु यदि अकेला बैठा हो तो उसका अशुभ फल कम ही मिलता है ! यदि राहु लग्न में आ जाएँ तो जन्म कुंडली में चाहे हजारों राज योग हो उनका नाश हो जाता है ! लग्न में बैठ कर राहु सूर्य का बल कम कर देता है , ऐसे जातको के पिता या तो स्वयं दुखी रहते है या उनकी अपने पिता से अनबन रहती है ! ऐसे जातकों पर अक्सर झूठा इल्जाम लग जाता है ! यदि राहु लग्न में आ जाएँ तो जन्म कुंडली में अर्ध - सूर्य ग्रहण योग बन जाता है !
लाल किताब में लग्न में बैठे राहु के विषय में इस प्रकार लिखा गया है -
" राहु पहले तख़्त पर तो तख़्त थराने लगा,
सूर्य बैठा हो जिस घर में ग्रहण वहां आने लगा !
गिगाड़ ख्याल इसका धन कर्जा कर दिया ,
राहु चढ़ा दिमाग पर चरखा उलट गया !! "
जय सदगुरुदेव .......!!
राहू के बारे में कहावत है - " राहु जिसे तारे उसे कौन मारे, राहु जिसे मारे उसे कौन तारे "
राहू का फल तीसरे, छठे और ग्यारवे भाव में शुभ माना जाता है क्योंके क्रूर ग्रह जब भी इन भावो में आ जाते है तो शुभ फल देते है पर भाइयों के सुख का नाश कर देते है ! यदि दवादश भाव मे राहु आ जाये तो अकसर यह देखा गया है कि जातक की या तो जेल यात्रा होती है और यदि द्वादश भाव का स्वामी और बृहस्पति बलवान हो तो यही जेल यात्रा विदेश यात्रा में बदल जाती है और यदि द्वादश भाव का स्वामी कमजोर हो और क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो , इसके साथ यदि लग्नेश भी कमजोर हो तो व्यक्ति को हस्पताल की यात्रा करनी पड़ती है !
प्रत्येक भाव में राहु अलग अलग फल देता है और जिस ग्रह के साथ बैठ जाए तो उसके बुरे फल को कई गुना बढ़ा देता है ! राहु यदि शनि के साथ बैठ जाये तो पितृ दोष का निर्माण करता है और मंगल के साथ बैठ जाएँ तो अंगारक योग का निर्माण करता है ! यदि राहु सूर्य और चन्द्र के साथ बैठ जाएँ तो ग्रहण योग का निर्माण करता है ! शुक्र के साथ बैठ जाएँ तो स्त्री श्राप का निर्माण करता है और यदि गुरु के साथ बैठ जाएँ तो चंडाल योग का निर्माण करता है !
लग्न में बैठ कर राहु पंचम, सप्तम और नवम भाव को देखता है और उनके शुभ फल को कम कर देता है !
लाल किताब में लग्न में बैठे राहु के विषय में इस प्रकार लिखा गया है -
" राहु पहले तख़्त पर तो तख़्त थराने लगा,
सूर्य बैठा हो जिस घर में ग्रहण वहां आने लगा !
गिगाड़ ख्याल इसका धन कर्जा कर दिया ,
राहु चढ़ा दिमाग पर चरखा उलट गया !! "
यह बात बिलकुल सही है क्योंकि भारत जिस समय आजाद हुआ तो भारत के लग्न में राहु था और इस कारण भारत के लोग अमरीका और कनाडा जैसे देशों में जाकर तरक्की करते है परन्तु भारत में उन्हें तरक्की नहीं मिल पाती ! 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो लग्न में राहु था, देश में उस समय हिन्दू मुस्लिम दंगे हुए और हजारों लोग बेघर हो गये ! राहु एक राशि में लगभग डेढ़ साल रहता है और 12 राशिओं का सफर 18 साल में तय कर लेता है !
यदि 1947 में 18 जोड़ दिए जाएँ तो 1965 आता है , मतलब सन 1965 में दोबारा राहु भारत के लग्न में आ गया और 1965 में भारत चीन से युद्ध हार गया ! यदि 1965 में भी 18 जोड़ दिया जाएँ तो सन 1983 आता है मतलब 1983 में राहु दोबारा भारत के लग्न में आ गया और सन 1983 हिन्दू सिक्ख दंगे हुए और सिक्खों के धार्मिक तीर्थ पर हमला हुआ और इसके बाद इंदिरा गाँधी की हत्या हुई ! यदि 1983 में 18 जोड़ दिए जाएँ तो 2001 आता है , मतलब सन 2001 में दोबारा राहु भारत के लग्न में आ गया और सन 2001 में भारतीय संसद पर हमला हुआ ! इससे आप अंदाज़ा लगा सकते है जब लग्न में बैठा राहु एक राष्ट्र पर बुरा प्रभाव डाल सकता है तो एक आम आदमी के जीवन पर इसका कितना प्रभाव होगा !
राहु यदि लग्न में आयें तो सूर्य की वस्तुओं का दान करने से लाभ होता है !
यदि लग्न में राहु आ जाएँ तो इसका सबसे सरल उपाये है बिल्ली की नाल को किसी कपडे में बांध कर अपने घर में किसी संदूक या अलमारी में छूपा कर रखे ! पर यदि बिल्ली की जेर / नाल न मिले तो एक सुखा नारियल लगातार 43 दिन बहते पानी में बहाये और प्रत्येक जन्म दिन पर एक ताम्बे की थाली में गेहूँ डालकर किसी मजदुर को दान करे !
प्रभु आप सबकी इच्छाएं पूर्ण करे ...!!
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