Dear Friends, nowadays there are a bunch of fraud gurus, babas,
sadhus and tantric who are duping their innocent disciples and public
and running Ashrams to run their business. These frauds are like black
spots on Hindu religion and its heritage. This blog is not the
blasphemy against any guru but the voice against frauds/scams done by so
called gurus and an effort to aware their innocent misguided
disciples/shishyas about them. I don't like to badmouth any true guru
or saint and would stay away from doing that but I cannot remain silent
as well if I see somebody claiming him/herself a siddh tantric or siddh
guru and cheating people and charging money for guru diksha, mantra
diksha, malla (rosary), Parad Gutika (a special tantric element which is
the mercury in extreme pure status) etc. I know that this blog may
disappoint many of Narayandutt Srimali's disciples as they love, adore
and extol him a lot. But I am feeling sorry for them as they are
innocent disciples who are entrapped by so called tantric Narayandutt
Srimali and his three fraud sons also known as "Trimurti" gurus. I pray
to Guru Dattatreya that kindly guide these misguided disciples on the
right path and to the write sadguru. Because I believe that whether a
guru is fraud or not, a disciple must be a true disciple and truth
seeker and must have guru bhakti. If such is the case today or tomorrow
he/she will meet his/her true sadguru. I know how much it hurts when a
disciple knows that his/her guru whom he worships more than anything in
this world and dedicates his/her whole life and family in some cases;
is a fraud person and nothing but an ordinary person. In many cases
a disciple totally brakes down and falls in the situation where he/she
will never be able to revive. In Hindu religion we have many
panth/paths and in any path guru diksha is not charged. It is totally
free to everybody. Also no parad gutika is needed in every tantric
sadhanaa. Because parad gutika is not an ordinary substance found in
the market. It is very special and hard to find kind of substance which
can be available only from siddhas in India and only to a very specific
person and for specific purpose.
Therefor kindly join our mission to expose Dr narayandutt Srimali
aka Nikhileshwaranand and his 3 sons who are running their business on
the name of religion and tantra.
I am making an official declaration before my sadguru that I am
neither paid to create this blog nor I am getting any benefit in any
other form from anybody who are against Narayandutt Srimali. It is a
pure effort to expose these fraud businessmen and some of their
disciples i.e. Anurag Sharma, trimurti guru and others. Everybody is
welcomed to read the blog and present their views and thoughts.
हम सबने अपने जीवन में आध्यात्म के नाम पर पाखण्ड करने वाले अनेकों पाखंडी देखे होंगे पर अक्सर ऐसे पाखंडी अपने ही पाखण्ड-जाल में फँस जाते है और अपने आप को ईश्वर साबित करने पर तुल जाते है ! ऐसे ही एक पाखंडी थे – डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली उर्फ़ निखिलेश्वरानंद जिनका पाखंड मरने के बाद भी बंद नहीं हुआ बल्कि इनकी पाखण्ड की दुकान एक से बढ़कर तीन हो गयी ! आईये इनका परिचय जानते है -
एक परिचय
यह वह महानुभाव है जिनका कहना था की मैं सिद्धाश्रम का प्रवक्ता हूँ और मेरे गुरु सच्चिदानंद है जोकि सिद्धाश्रम के संचालक है ! इनके शिष्यों के अनुसार ३३ करोड़ देवी देवता इनके चरणों में लोटे रहते है और नवनाथ इनके सामने हाथ बांधे खडे रहते है ! इन्हें ६४ कृत्या सिद्ध है और ब्रह्माण्ड की प्रत्येक शक्ति इनके सामने नतमस्तक है और त्रिजटा अघोरी जैसे साधक इनसे ज्ञान लेने आते है ! इन्हें पारद विज्ञानं में महारथ हासिल है और यह पारद द्वारा स्वर्ण निर्माण करना जानते है ! इन्हें दस महाविद्यायें सिद्ध है जो तंत्र की सर्वोच्च शक्तियां कही जाती है ! भगवान् शिव के अनुसार तंत्र में महाविद्यां के बाद कुछ है ही नहीं , यदि कोई एक महाविद्या भी सिद्ध कर ले तो वह महान बन जाता है जैसे श्री रामकृष्ण परमहंस जी को दक्षिणेश्वर काली सिद्ध थी और वह महान बन गए ! इसी तरह वामाखेपा जी को माँ तारा सिद्ध थी और वह महान विभूति थे पर इन दोनों ने कभी यह दावा नहीं किया कि मुझे दस महाविद्यायें सिद्ध है ! इन दोनों ही महान विभूतियों ने केवल अपने इष्ट का ही गुणगान किया !
केवल इतना ही नहीं इन्हें परकाया-प्रवेश की सिद्धि भी प्राप्त थी और यह एक ही समय पर अनेकों रूप बनाकर घूम सकते है ! और इतना ही नहीं यह नवीन सृष्टि रचना की कला भी जानते है जिसके द्वारा विश्वामित्र जी ने दूसरे स्वर्ग की रचना कर दी थी ! वह त्रिकालदर्शी थे , ऐसा और भी बहुत कुछ इनके बारे में कहा जाता है , कल्पना कीजिये कितने बडे व्यक्तित्व होंगे यह जिनके सामने ३३ करोड़ देवी देवता लोटे रहते है और नवनाथ जिनके सामने हाथ बांधे खडे रहते है !
सिद्धाश्रम का परिचय
आईये अब जानते है कि यह सिद्धाश्रम क्या है ? क्योंकि अधिकतर लोगों ने सिद्धाश्रम का नाम ही पहली बार सुना होगा ! सिद्धाश्रम एक ऐसा लोक है यहां सिद्ध रहते है और वाल्मीकि रामायण, शिव पुराण, अग्नि पुराण में सिद्धाश्रम का जिक्र आया है ! सिद्धाश्रम में कोई आम व्यक्ति नहीं जा सकता पर विश्वामित्र आदि सिद्ध वहाँ निवास करते है और ईश्वर की भक्ति करते है यहाँ रहने वाले सिद्ध पुरी सृष्टि में कहीं भी सशरीर आ जा सकते है !
आईये आज इनके पाखण्ड का पर्दाफाश करते है -
इस यक्ष प्रशन का उत्तर इनके किसी शिष्य के पास नहीं है ! इनके सन्यासी स्वरुप की बात करे तो वह एक कंप्यूटर-निर्मित फोटो है और इनके तथाकथित गुरु सच्चिदानंद की कोई फोटो, तस्वीर कुछ भी नहीं है और ना ही सच्चिदानंद के गुरु कौन थे और ना ही उनकी गुरु परंपरा का कोई ज्ञान रखता है ! मतलब यह तो साफ़ है कि इन्होने अपना नाम निखिलेश्वरानंद स्वयं ही रख लिया और मनगढ़ंत कहानियां गढ़ ली जो पाठकों को लुभा सके और इनकी तरफ आकर्षित कर सके !
यह वह महानुभाव है जिनका कहना था की मैं सिद्धाश्रम का प्रवक्ता हूँ और मेरे गुरु सच्चिदानंद है जोकि सिद्धाश्रम के संचालक है ! इनके शिष्यों के अनुसार ३३ करोड़ देवी देवता इनके चरणों में लोटे रहते है और नवनाथ इनके सामने हाथ बांधे खडे रहते है ! इन्हें ६४ कृत्या सिद्ध है और ब्रह्माण्ड की प्रत्येक शक्ति इनके सामने नतमस्तक है और त्रिजटा अघोरी जैसे साधक इनसे ज्ञान लेने आते है ! इन्हें पारद विज्ञानं में महारथ हासिल है और यह पारद द्वारा स्वर्ण निर्माण करना जानते है ! इन्हें दस महाविद्यायें सिद्ध है जो तंत्र की सर्वोच्च शक्तियां कही जाती है ! भगवान् शिव के अनुसार तंत्र में महाविद्यां के बाद कुछ है ही नहीं , यदि कोई एक महाविद्या भी सिद्ध कर ले तो वह महान बन जाता है जैसे श्री रामकृष्ण परमहंस जी को दक्षिणेश्वर काली सिद्ध थी और वह महान बन गए ! इसी तरह वामाखेपा जी को माँ तारा सिद्ध थी और वह महान विभूति थे पर इन दोनों ने कभी यह दावा नहीं किया कि मुझे दस महाविद्यायें सिद्ध है ! इन दोनों ही महान विभूतियों ने केवल अपने इष्ट का ही गुणगान किया !
केवल इतना ही नहीं इन्हें परकाया-प्रवेश की सिद्धि भी प्राप्त थी और यह एक ही समय पर अनेकों रूप बनाकर घूम सकते है ! और इतना ही नहीं यह नवीन सृष्टि रचना की कला भी जानते है जिसके द्वारा विश्वामित्र जी ने दूसरे स्वर्ग की रचना कर दी थी ! वह त्रिकालदर्शी थे , ऐसा और भी बहुत कुछ इनके बारे में कहा जाता है , कल्पना कीजिये कितने बडे व्यक्तित्व होंगे यह जिनके सामने ३३ करोड़ देवी देवता लोटे रहते है और नवनाथ जिनके सामने हाथ बांधे खडे रहते है !
सिद्धाश्रम का परिचय
आईये अब जानते है कि यह सिद्धाश्रम क्या है ? क्योंकि अधिकतर लोगों ने सिद्धाश्रम का नाम ही पहली बार सुना होगा ! सिद्धाश्रम एक ऐसा लोक है यहां सिद्ध रहते है और वाल्मीकि रामायण, शिव पुराण, अग्नि पुराण में सिद्धाश्रम का जिक्र आया है ! सिद्धाश्रम में कोई आम व्यक्ति नहीं जा सकता पर विश्वामित्र आदि सिद्ध वहाँ निवास करते है और ईश्वर की भक्ति करते है यहाँ रहने वाले सिद्ध पुरी सृष्टि में कहीं भी सशरीर आ जा सकते है !
आईये आज इनके पाखण्ड का पर्दाफाश करते है -
1.
सबसे पहले तो इनके तथाकथित नाम “निखिलेश्वरानंद” की ही बात करते है ! इन्हें यह नाम किसने दिया ? यह सनातन धर्म के किस मत अथवा परंपरा से है – वैष्णव , शैव , शाक्त , सौर , गाणपत्य ?इस यक्ष प्रशन का उत्तर इनके किसी शिष्य के पास नहीं है ! इनके सन्यासी स्वरुप की बात करे तो वह एक कंप्यूटर-निर्मित फोटो है और इनके तथाकथित गुरु सच्चिदानंद की कोई फोटो, तस्वीर कुछ भी नहीं है और ना ही सच्चिदानंद के गुरु कौन थे और ना ही उनकी गुरु परंपरा का कोई ज्ञान रखता है ! मतलब यह तो साफ़ है कि इन्होने अपना नाम निखिलेश्वरानंद स्वयं ही रख लिया और मनगढ़ंत कहानियां गढ़ ली जो पाठकों को लुभा सके और इनकी तरफ आकर्षित कर सके !
2.
इनके अनुसार यह सिद्धाश्रम से केवल २० साल के लिए धरती पर आये थे !
क्या आप कल्पना कर सकते है कि सिद्धाश्रम निवासी परमहंस की भविष्यवाणी गलत
हो सकती है ? दूसरी बात यदि जोधपुर के लोगों की मानी जाए तो कुछ समय तक वह
एक पुस्तकालय में काम करते रहे और उसके कुछ समय बाद इन्होने
मंत्र-तंत्र-यन्त्र नामक एक पत्रिका शुरू कर दी ! यह कुछ समय के लिए
कीनाराम परंपरा में अघोर साधना सीखने भी गए पर असफल होकर वापस आ गए और
ज्योतिष की तरफ रुख कर लिया पर ज्योतिष में भी कामयाब नहीं हुए और अपनी ही
जन्म कुंडली का सही अध्ययन नहीं कर पायें !
यदि हम हमारे धर्म शास्त्रों का ठीक से अध्ययन करे तो वाल्मीकि रामायण में राम और लक्ष्मण जब असुरों का संहार करते है तो विश्वामित्र प्रसन्न हो जाते है और उस समय वह सिद्धाश्रम के विषय में बात करते है पर उन्होंने वहाँ सच्चिदानंद और निखिलेश्वरानंद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया !
यदि शिव पुराण का अध्ययन किया जाये तो शिव पुराण में भी कहीं निखिलेश्वरानंद या सच्चिदानंद के संचालक और प्रवक्ता होने का जिक्र नहीं आता !
अग्नि पुराण के अनुसार -
"सिद्धाश्रम निवासी च विश्वमित्रादिभी: सह |
कौलीश्नाथ: श्री कंठनाथो गगननाथक: ||
तूर्णनाथ: शिव: कृष्णो भवस्ते नवनाथक: || "
इस श्लोक में भी कहीं निखिलेश्वरानंद और सच्चिदानंद का जिक्र नहीं आया ! यदि सच्चिदानंद और निखिलेश्वरानंद सिद्धाश्रम के प्रवक्ता और संचालक होते तो उनका नाम जरुर आता पर हमारे सनातन धर्म के शास्त्रों में कहीं पर भी इन दोनों को संचालक और प्रवक्ता नहीं माना गया ! एक और विशेष बात , निखिलेश्वरानंद का जन्म अभी हाल ही का है तो क्या उनके जन्म से पहले कोई सिद्धाश्रम का प्रवक्ता नहीं था ? क्या सिद्धाश्रम के प्रवक्ता बदलते रहते है ? क्या वहाँ भी हमारी लोकसभा की तरह चुनाव होते है ! मतलब साफ़ है कि यह एक कोरी गप्प है , उनका सिद्धाश्रम से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है ! यह कहानी उन्होंने लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए गढ़ ली !
आईये पहले दीक्षा की बात करते है ! कुलावार्ण तंत्र के अनुसार दीक्षा तीन प्रकार की होती है और स्वयं नारायण दत्त श्रीमाली ने अपनी पुस्तक ” मंत्र रहस्य ” के पेज नो. 179 पर इन तीनों दीक्षाओं का वर्णन किया है !
1. स्पर्श दीक्षा : – जिस प्रकार पक्षी अपने छोटे छोटे ( उड़ने में अशक्त ) बच्चों का लालन-पालन करता है , उसी प्रकार स्पर्श दीक्षा से गुरु अपने शिष्य को योग्य बनाता है !
2. दृग दीक्षा : – जिस प्रकार कछवी अपनी दृष्टि मात्र से बच्चों का पालन-पोषण करती है, ठीक उसी प्रकार की दृग दीक्षा होती है !
3. ध्यान दीक्षा : – जिस प्रकार मछली केवल ध्यानमात्र से अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, ठीक उसी प्रकार गुरु उस दीक्षा के माध्यम से शिष्य को योग्य बनाता है !
अपनी इस पुस्तक में कही भी इस बात का जिक्र नहीं किया कि मंत्र दीक्षा सभा में बोलकर दी जा सकती है , पर नारायण दत्त श्रीमाली सभा में बोलकर मंत्र दीक्षा देते थे ! नारायण श्रीमाली की इसी पुस्तक ” मंत्र रहस्य ” के पेज नो. 193 में उन्होंने मंत्र दोष का वर्णन किया है जिसमे आठ दोषों को उन्होंने मुख्य माना है ! यह आठ दोष मंत्र सिद्धि में रुकावट है और यह दोष इस प्रकार है :
1. अभक्ति
2. अक्षरभ्रान्ति
3.लुप्त
4.छिन्न
5. ह्रस्व
6. दीर्घ
7. कथन
8. स्वपन-कथन
इनमे से सातवां दोष इन्होने कथन बताया है और इनके अनुसार “जाग्रत अवस्था में अपने मंत्र को किसी अन्य को कह देना, बता देना या सुना देना कथन दोष कहलाता है ! इस दोष के निवारणार्थ साधक को चाहिए कि वह अपना दोष गुरुदेव को बता दे ! वे जो प्रायश्चित निर्धारित करें, उसे स्वीकार करे तभी इस दोष का मार्जन हो सकता है !”
यदि हमारे धर्म शास्त्रों की बात माने तो सभा में यदि किसी मंत्र को बोल दिया जाए तो वह कीलित हो जाता है और गुरुमंत्र जब भी दिया जाता है तो शिष्य के कान में दिया जाता है ! केवल इतना ही नहीं दाहिने कान में मंत्र दिया जाता है और बाएँ कान में शिष्य को ऊँगली देने का निर्देश दिया जाता है और गुरु मंत्र को प्राणों से भी अधिक प्रिय मानकर गुप्त रखा जाता है जिस प्रकार एक लालची व्यक्ति अपना धन छुपाकर रखता है !
अब बात करते है फोटो द्वारा दीक्षा की ! आदिकाल से प्रचलन है दीक्षा और शक्तिपात का पर हमारे तंत्र शास्त्रों में फोटो द्वारा दीक्षा या शक्तिपात की बात नहीं आती स्वयं भगवान् राम और कृष्ण ने भी गुरु-चरणों में बैठकर ही शिक्षा और दीक्षा प्राप्त की , उन्होंने अपनी फोटो या चित्र नहीं भेजा ! इनकी किताब “मंत्र रहस्य” के पेज नो. 29. और 30. में एक प्रसंग है यहाँ नारायण दत्त श्रीमाली बद्रीनाथ से 15 किलोमीटर दूर भ्रीकुण्डी आश्रम में स्वामी प्रव्रज्यानन्द के पास मंत्र सीखने पहुंचे और उन्होंने इन्हें दीक्षा दी ! यदि फोटो द्वारा दीक्षा हो सकती थी तो उनके पास दीक्षा लेने स्वयं क्यों गए ? उनके पास अपनी फोटो क्यों नहीं भेज दी ? क्या स्वामी प्रव्रज्यानन्द जी फोटो द्वारा दीक्षा देने में समर्थ नहीं थे या इस प्रकार की दीक्षा का शास्त्रों में विधान ही नहीं है ??
मतलब साफ़ है कि यह मनमानी दीक्षा देकर लोगों को लुटते रहे और धर्म के नाम पर पाखण्ड करते रहे ! शायद इन्होने कभी तंत्र शास्त्रों का अध्ययन नहीं किया और तंत्र शास्त्र तो अलग बात है इन्होने कभी अपनी पुस्तक भी ठीक से नहीं पढ़ी !
क्या आपको लगता है कि परमहंस अवस्था प्राप्त व्यक्ति इस प्रकार की गलती कर सकता और अपनी ही किताब में लिखी अपनी ही बातों से मुकर सकता है ?
तंत्र शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को दो भागों में बांटा गया है , एक काली कुल और दूसरा श्री कुल ! काली कुल में चार देवियों को माना गया है – काली, तारा, छिन्मस्ता और भुवनेश्वरी जबकि श्रीकुल में छह देवियों को माना गया है – षोडशी, त्रिपुरभैरवी , बगलामुखी , मातंगी , धूमावती , कमला ! तंत्र के अनुसार आद्या महाविद्या काली है , वही शुन्य स्वरूपा है और वह ही दस महाविद्याओं के अलग अलग रूपों को धारण करती है ! जो दस महाविद्याओं को अलग अलग मानता है वह रौरव नामक नरक में जाता है मतलब तत्व से सभी देवियाँ एक ही है – मतलब साफ़ है कि यदि एक को सिद्ध कर लिया तो बाकी नौ भी सिद्ध हो जाती है ऐसा ज्ञानी जनों का मानना है !
काली कुल और श्री कुल – दोनों में से किसी एक ही कुल की साधनाओं में साधक आगे बढ़ सकता है क्योंकि एक मार्ग को वाममार्ग कहा जाता है और दुसरे को दक्षिणमार्ग ! कोई भी व्यक्ति दोनों प्रकार की साधनाओं को सिद्ध नहीं कर सकता क्योंकि काली कुल अग्नि तत्व का सूचक है वही श्री कुल जल तत्व का सूचक है , अग्नि और जल का कभी मिलन हो ही नहीं सकता ! इस विषय में एक और तथ्य महत्वपूर्ण है कि चक्र पूजन के दौरान वाममार्गी पंच मकार पूजन करते है और बायें हाथ से पात्र लेते है जबकि दक्षिण मार्ग के साधक दाहिने हाथ से पात्र लेते है और पंच मकार के स्थान पर विकल्पों का इस्तेमाल करते है !
अब विचार करने योग्य बात यह है कि क्या वाम और दक्षिण मार्ग की साधनाओं को सिद्ध करने वाला साधक दोनों हाथ से पात्र लेगा ? यदि कोई कहे कि उन्होंने इस मार्ग से साधना ही नहीं की तो भाई तंत्र शास्त्रों में भगवान् शिव ने साफ़ साफ़ कहा है कि बिना पंच मकार पूजा के माँ तारा को सिद्ध नहीं किया जा सकता और इस विषय में महर्षि वशिष्ट और महात्मा बुध की कथा प्रमाण है ! योगिनी तंत्र में ऐसा उल्लेख आता है कि बिना मकार पूजा के योगिनी का सिद्ध होना असंभव है तो निखिलेश्वरानंद ने दस महाविद्या कहा से सिद्ध कर ली ? मतलब साफ़ है कि यह कथा भी उन्होंने अपने महिमामंडन के लिए ही रची है !
इनकी पुस्तक “मंत्र रहस्य” के पेज नो. 280. और 281. पर इन्होने माँ कामकला काली का वर्णन किया है ! क्या इन्होने वास्तव में माँ कामकला काली सिद्ध की थी या तंत्र शास्त्र से उठाकर अपनी पुस्तक में छाप दिया ? कौलमार्ग के अनुसार माँ कामकला काली की सिद्धि वही कर सकता है जो पंच मकारों का सेवन करता है और जिसे चक्र पूजन का ज्ञान हो ! इस शक्ति के विषय में कहा जाता है कि यह शक्ति ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्ति है , इनकी उपासना इंद्रा वरुण महाकाल आदि देवता करते है ! केवल इतना ही नहीं महापंडित रावण ने भी इनकी उपासना की थी ! यदि इनके शिष्यों की माने तो इन्हें कामकला काली सिद्ध थी !
यदि हमारे तंत्र शास्त्रों में महाकाल संहिता को पढ़ा जाए तो महाकाल संहिता के कामकला खंड में साफ़ साफ़ कहा है कि ब्राह्मण और वैश्य इस विद्या को सिद्ध करने के अधिकारी ही नहीं है यह विद्या केवल क्षत्रिय और शुद्र ही सिद्ध कर सकते है ! अब अधिकतर लोगों का प्रशन होगा कि महापंडित रावण ने इस विद्या को कैसे सिद्ध कर लिया तो भाई रावण में आधे गुण राक्षसों के थे और आधे ब्राह्मण के ! पर यहाँ तक मैं जानता हूँ नारायण दत्त श्रीमाली ब्राह्मण थे तो क्या शिव और शक्ति का संवाद झूठा हो गया ? क्या यह भी एक कपोल कल्पित कथा है जो लोगों को अपनी और आकर्षित करने के लिए रची गयी ?
यदि नारायण दत्त श्रीमाली पारद संस्कार द्वारा स्वर्ण का निर्माण करना जानते थे तो दीक्षा के नाम पर लोगों से मोटी रकम क्यों वसूलते थे ? क्यों मनघडंत यंत्र और माला को महंगे दामों पर बेचते थे ? एक बात यहाँ बताना चाहूँगा कि वह जिन यन्त्र और मालाओं का जिक्र अपनी साधनाओं में करते थे उसका जिक्र हमारे तंत्र शास्त्रों में आता ही नहीं ! उनके द्वारा दिए जाने वाले अधिकतर यन्त्र केवल कपोल कल्पित होते है !
यदि वास्तव में वह स्वर्ण निर्माण जानते थे तो ज्ञान प्रसार के लिए अपनी पत्रिका मुफ्त क्यों नहीं बाँट दी ? क्यों यन्त्र माला के लिए मोटी रकम लेते थे ? क्यों हर दीक्षा के लिए मोटी रकम वसूली जाती थी ? क्यों शक्तिपात के लिए अलग से पैसा लिया जाता था ? क्या उन्हें धन का इतना लोभ था ? यदि वह लोभी थे तो परमहंस कैसे हो सकते है क्योंकि परमहंस वही हो सकते है जो लोभ से मुक्त हों जैसे रामकृष्ण परमहंस, और वामाखेपा जी !
एक बार गुरु नानक जी को उनके पिता ने २० रूपए देकर कहा कि सच्चा सौदा करके आओ और उन्होंने उस २० रुपये से भूखे साधुओ को भोजन करवाया और कहा मैंने सच्चा सौदा कर दिया ! धन्य है गुरु नानक देवजी जो स्वयं ईश्वर है ! उन्होंने धन से अधिक संत सेवा को महत्व दिया और एक तरफ यह तथाकथित सिद्ध निखिलेश्वरानंद है जो स्वयं को ईश्वर-तुल्य बतलाता है और लोगों को धर्म के नाम पर धन इकठ्ठा करता था ! इन तथ्यों के अनुसार वह स्वर्ण बनाना तो नहीं जानते थे परन्तु भोली भाली जनता को ठगना अवश्य जानते थे !
यदि वह सच में त्रिकालदर्शी सिद्ध थे तो जिस वक़्त उनके घर पर आयकर विभाग ने रेड मारी तो कहा चला गया था उनका त्रिकाल ज्ञान ? क्या हुआ था उनके फलित ज्योतिष को ? कहा चली गयी थी उनकी सिद्धाश्रम की सभी सिद्धियाँ ? क्यों वह बेहोश होकर गिर गए थे ? इस विषय में हमने RTI ( Right To Information ) फाइल किया है ! रिपोर्ट आते ही हम इस पाखण्ड के विषय में सभी अखबारों और पत्रिकाओं को प्रेस नोट देंगे ताकि इनके फैलाए हुए पाखण्ड का खुलासा जनमानस के सामने हो !
इस विषय पर चंडी प्रकाशन ने एक लेख प्रकाशित किया था जो मैं अपने आने वाले लेखों में चित्र सहित दूंगा ! यहाँ मैं नारायण दत्त श्रीमाली के एक शिष्य की करतूत दिखाना चाहूँगा जो उन्होंने अपने गुरु का महिमामंडन करते हुए चोरी की है
इस लिंक में दी गयी साधना एक नाथ पंथी साधना है जो इसी साईट से चुरायी गयी है और अपने गुरु की फोटो लगाकर सिद्धाश्रम के नाम से छपी गयी है ताकि और लोगों को सिद्धाश्रम के नाम पर ठगा जा सके !
जितना बड़ा यह अपने आप को सिद्ध बताते है , उसी प्रकार की बड़ी बड़ी कथाएँ इन्होने अपने विषय में रच रखी है ! इनकी किताब “मंत्र रहस्य” के पेज नो. 35. और 36. को देखे ! यहाँ नारायण दत्त श्रीमाली ने स्वयं को स्वामी प्रव्रज्यानन्द का उतराधिकारी घोषित किये जाने वाली कथा का वर्णन किया है ! इस कथा के अनुसार स्वामी प्रव्रज्यानन्द जी ने जिस समय नारायण दत्त श्रीमाली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया उस समेत उन्होंने सूर्य मंत्र द्वारा अग्नि को प्रज्वलित किया, वरुण देव का आवाहन कर उन्हें स्नान करवाया और कुबेर द्वारा वस्त्र प्राप्त किये; इस प्रकार मंत्र द्वारा ही साड़ी भौतिक सामग्री प्राप्त की !
जिस समय नारायण दत्त श्रीमाली ने अपने तीनों पुत्र – अरविन्द श्रीमाली, कैलाश चन्द्र श्रीमाली और नन्द किशोर श्रीमाली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया क्या उन्होंने भी मंत्र द्वारा सभी भौतिक सामग्री प्राप्त की या वह इस प्रकार भौतिक सामग्री प्राप्त करने में समर्थ नहीं थे ?
क्या यह कहानी भी एक कपोल कल्पित कथा है जो महिमामंडन के लिए रची गयी है ?
इस विषय पर मैं यह कहना चाहूँगा कि भगवान् श्री कृष्ण स्वयं ईश्वर थे और उन्होंने गीता जैसा महान ज्ञान सारी मानवता को दिया और उनके इस ज्ञान को जीवन में उतारकर अनेकों संत महान बन गए ! कृष्ण जी यन्त्र माला बेचने वाले व्यापारी नहीं थे , और ना ही उनके विषय में कहने वाली कथाएँ कपोल कल्पित है , वह सनातन धर्म के मूल है ! इसी प्रकार भगवान बुद्ध ने सारी दुनिया को निर्वाण का मार्ग दिखाया ! आज बौद्ध धर्म विश्व का चौथा सबसे बड़ा धर्म है पर इस नारायण दत्त श्रीमाली ने मोक्ष की बात ही नहीं की बल्कि अपने शिष्यों को सिद्धियों के जाल में फँसाया , यक्षिणी अप्सरा आदि की लुभावनी साधनाओं का प्रचार किया !
एक गुरु गोबिंद सिंह जी थे जिन्होंने अपने सारे परिवार को सनातन धर्म के लिए कुर्बान कर दिया और फिर भी उन्होंने कहा कि -
मतलब गुरु गोबिंद सिंह जी का कहना है कि जो मुझे परमेश्वर कहेगा वो घोर नरक में जायेगा ! अपनी पूजा ना करवाकर अकालपुरुख की पूजा पर जोर दिया ! नाथ पंथ का भी ऐसा ही मानना है ! नाथ पंथ भी अलषपुरुष निरंजन निराकार ईश्वर की उपासना पर ही जोर देता है पर इस नारायण दत्त श्रीमाली ने अपने आप को ईश्वर साबित करने का प्रत्यन्न किया जिसका हम कड़ा खंडन करते है !
मेरे पास नारायण दत्त श्रीमाली की केवल एक ही किताब थी जो मुझे एक मित्र से प्राप्त हुई ! मैंने उनकी बाकी किताबे भी आर्डर कर दी है, जल्द ही उनका भी मंथन करूँगा और इनके पाखंड का पर्दाफाश कर दूंगा ! इसके अलावा मैंने RTI भी फाइल किया है , जवाब मिलते ही इनका विरोध और तेज कर दिया जायेगा और अखबारों एवं पत्रिकाओं द्वारा इनके प्रति लोगों को जागरूक किया जायेगा !
मेरा यह लेख उन सभी निखिल शिष्यों के मुंह पर तमाचा है जो अन्य सम्प्रदायों की निंदा करते है और उन्हें गालियाँ देते है ! मेरे इस थप्पड़ की गूंज हमेशा उनके कानो में गूंजती रहेगी क्योंकि मेरे द्वारा लिखे इन प्रश्नों का उत्तर वो कभी नहीं दे पायेगे ! जब उनका गुरु ही अपने द्वारा लिखी हुई किताब से मुकर गया तो उनके शिष्य अब क्या उत्तर दंगे !
मैं तमाम हिन्दू संगठनों से अपील करता हूँ कि हिन्दू धर्म के देवी देवताओं को अपने चरणों में लोटने वाला बताने वाले और स्वयं को ईश्वर तुल्य पाखंडियों का विरोध करे ….
जय सदगुरुदेव ..!!
यदि हम हमारे धर्म शास्त्रों का ठीक से अध्ययन करे तो वाल्मीकि रामायण में राम और लक्ष्मण जब असुरों का संहार करते है तो विश्वामित्र प्रसन्न हो जाते है और उस समय वह सिद्धाश्रम के विषय में बात करते है पर उन्होंने वहाँ सच्चिदानंद और निखिलेश्वरानंद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया !
यदि शिव पुराण का अध्ययन किया जाये तो शिव पुराण में भी कहीं निखिलेश्वरानंद या सच्चिदानंद के संचालक और प्रवक्ता होने का जिक्र नहीं आता !
अग्नि पुराण के अनुसार -
"सिद्धाश्रम निवासी च विश्वमित्रादिभी: सह |
कौलीश्नाथ: श्री कंठनाथो गगननाथक: ||
तूर्णनाथ: शिव: कृष्णो भवस्ते नवनाथक: || "
इस श्लोक में भी कहीं निखिलेश्वरानंद और सच्चिदानंद का जिक्र नहीं आया ! यदि सच्चिदानंद और निखिलेश्वरानंद सिद्धाश्रम के प्रवक्ता और संचालक होते तो उनका नाम जरुर आता पर हमारे सनातन धर्म के शास्त्रों में कहीं पर भी इन दोनों को संचालक और प्रवक्ता नहीं माना गया ! एक और विशेष बात , निखिलेश्वरानंद का जन्म अभी हाल ही का है तो क्या उनके जन्म से पहले कोई सिद्धाश्रम का प्रवक्ता नहीं था ? क्या सिद्धाश्रम के प्रवक्ता बदलते रहते है ? क्या वहाँ भी हमारी लोकसभा की तरह चुनाव होते है ! मतलब साफ़ है कि यह एक कोरी गप्प है , उनका सिद्धाश्रम से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है ! यह कहानी उन्होंने लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए गढ़ ली !
3.
निखिलेश्वरानंद गुरु पद पर आसीन होने के बाद दीक्षा देने लगे ! वह सभा में बोलकर गुरु मंत्र देते थे और बाद में वही गुरुमंत्र उनकी पत्रिका में उन्होंने छपवाया जबकि शास्त्र इसकी अनुमति नहीं देता और केवल इतना ही नहीं बल्कि इन्होने फोटो द्वारा दीक्षा देने का नया पाखण्ड जाल फैलाया जिसका शास्त्रों में कोई विधान नहीं ! क्या फोटो द्वारा दीक्षा और शक्तिपात किया जा सकता है ? क्या गुरु मंत्र सभा में बोलकर या जागृत अवस्था में किसी को बताना चाहिए ?आईये पहले दीक्षा की बात करते है ! कुलावार्ण तंत्र के अनुसार दीक्षा तीन प्रकार की होती है और स्वयं नारायण दत्त श्रीमाली ने अपनी पुस्तक ” मंत्र रहस्य ” के पेज नो. 179 पर इन तीनों दीक्षाओं का वर्णन किया है !
1. स्पर्श दीक्षा : – जिस प्रकार पक्षी अपने छोटे छोटे ( उड़ने में अशक्त ) बच्चों का लालन-पालन करता है , उसी प्रकार स्पर्श दीक्षा से गुरु अपने शिष्य को योग्य बनाता है !
2. दृग दीक्षा : – जिस प्रकार कछवी अपनी दृष्टि मात्र से बच्चों का पालन-पोषण करती है, ठीक उसी प्रकार की दृग दीक्षा होती है !
3. ध्यान दीक्षा : – जिस प्रकार मछली केवल ध्यानमात्र से अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, ठीक उसी प्रकार गुरु उस दीक्षा के माध्यम से शिष्य को योग्य बनाता है !
अपनी इस पुस्तक में कही भी इस बात का जिक्र नहीं किया कि मंत्र दीक्षा सभा में बोलकर दी जा सकती है , पर नारायण दत्त श्रीमाली सभा में बोलकर मंत्र दीक्षा देते थे ! नारायण श्रीमाली की इसी पुस्तक ” मंत्र रहस्य ” के पेज नो. 193 में उन्होंने मंत्र दोष का वर्णन किया है जिसमे आठ दोषों को उन्होंने मुख्य माना है ! यह आठ दोष मंत्र सिद्धि में रुकावट है और यह दोष इस प्रकार है :
1. अभक्ति
2. अक्षरभ्रान्ति
3.लुप्त
4.छिन्न
5. ह्रस्व
6. दीर्घ
7. कथन
8. स्वपन-कथन
इनमे से सातवां दोष इन्होने कथन बताया है और इनके अनुसार “जाग्रत अवस्था में अपने मंत्र को किसी अन्य को कह देना, बता देना या सुना देना कथन दोष कहलाता है ! इस दोष के निवारणार्थ साधक को चाहिए कि वह अपना दोष गुरुदेव को बता दे ! वे जो प्रायश्चित निर्धारित करें, उसे स्वीकार करे तभी इस दोष का मार्जन हो सकता है !”
यदि हमारे धर्म शास्त्रों की बात माने तो सभा में यदि किसी मंत्र को बोल दिया जाए तो वह कीलित हो जाता है और गुरुमंत्र जब भी दिया जाता है तो शिष्य के कान में दिया जाता है ! केवल इतना ही नहीं दाहिने कान में मंत्र दिया जाता है और बाएँ कान में शिष्य को ऊँगली देने का निर्देश दिया जाता है और गुरु मंत्र को प्राणों से भी अधिक प्रिय मानकर गुप्त रखा जाता है जिस प्रकार एक लालची व्यक्ति अपना धन छुपाकर रखता है !
अब बात करते है फोटो द्वारा दीक्षा की ! आदिकाल से प्रचलन है दीक्षा और शक्तिपात का पर हमारे तंत्र शास्त्रों में फोटो द्वारा दीक्षा या शक्तिपात की बात नहीं आती स्वयं भगवान् राम और कृष्ण ने भी गुरु-चरणों में बैठकर ही शिक्षा और दीक्षा प्राप्त की , उन्होंने अपनी फोटो या चित्र नहीं भेजा ! इनकी किताब “मंत्र रहस्य” के पेज नो. 29. और 30. में एक प्रसंग है यहाँ नारायण दत्त श्रीमाली बद्रीनाथ से 15 किलोमीटर दूर भ्रीकुण्डी आश्रम में स्वामी प्रव्रज्यानन्द के पास मंत्र सीखने पहुंचे और उन्होंने इन्हें दीक्षा दी ! यदि फोटो द्वारा दीक्षा हो सकती थी तो उनके पास दीक्षा लेने स्वयं क्यों गए ? उनके पास अपनी फोटो क्यों नहीं भेज दी ? क्या स्वामी प्रव्रज्यानन्द जी फोटो द्वारा दीक्षा देने में समर्थ नहीं थे या इस प्रकार की दीक्षा का शास्त्रों में विधान ही नहीं है ??
मतलब साफ़ है कि यह मनमानी दीक्षा देकर लोगों को लुटते रहे और धर्म के नाम पर पाखण्ड करते रहे ! शायद इन्होने कभी तंत्र शास्त्रों का अध्ययन नहीं किया और तंत्र शास्त्र तो अलग बात है इन्होने कभी अपनी पुस्तक भी ठीक से नहीं पढ़ी !
क्या आपको लगता है कि परमहंस अवस्था प्राप्त व्यक्ति इस प्रकार की गलती कर सकता और अपनी ही किताब में लिखी अपनी ही बातों से मुकर सकता है ?
4.
क्या नारायण दत्त श्रीमाली को दस महाविद्यायें सिद्ध थी ?तंत्र शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को दो भागों में बांटा गया है , एक काली कुल और दूसरा श्री कुल ! काली कुल में चार देवियों को माना गया है – काली, तारा, छिन्मस्ता और भुवनेश्वरी जबकि श्रीकुल में छह देवियों को माना गया है – षोडशी, त्रिपुरभैरवी , बगलामुखी , मातंगी , धूमावती , कमला ! तंत्र के अनुसार आद्या महाविद्या काली है , वही शुन्य स्वरूपा है और वह ही दस महाविद्याओं के अलग अलग रूपों को धारण करती है ! जो दस महाविद्याओं को अलग अलग मानता है वह रौरव नामक नरक में जाता है मतलब तत्व से सभी देवियाँ एक ही है – मतलब साफ़ है कि यदि एक को सिद्ध कर लिया तो बाकी नौ भी सिद्ध हो जाती है ऐसा ज्ञानी जनों का मानना है !
काली कुल और श्री कुल – दोनों में से किसी एक ही कुल की साधनाओं में साधक आगे बढ़ सकता है क्योंकि एक मार्ग को वाममार्ग कहा जाता है और दुसरे को दक्षिणमार्ग ! कोई भी व्यक्ति दोनों प्रकार की साधनाओं को सिद्ध नहीं कर सकता क्योंकि काली कुल अग्नि तत्व का सूचक है वही श्री कुल जल तत्व का सूचक है , अग्नि और जल का कभी मिलन हो ही नहीं सकता ! इस विषय में एक और तथ्य महत्वपूर्ण है कि चक्र पूजन के दौरान वाममार्गी पंच मकार पूजन करते है और बायें हाथ से पात्र लेते है जबकि दक्षिण मार्ग के साधक दाहिने हाथ से पात्र लेते है और पंच मकार के स्थान पर विकल्पों का इस्तेमाल करते है !
अब विचार करने योग्य बात यह है कि क्या वाम और दक्षिण मार्ग की साधनाओं को सिद्ध करने वाला साधक दोनों हाथ से पात्र लेगा ? यदि कोई कहे कि उन्होंने इस मार्ग से साधना ही नहीं की तो भाई तंत्र शास्त्रों में भगवान् शिव ने साफ़ साफ़ कहा है कि बिना पंच मकार पूजा के माँ तारा को सिद्ध नहीं किया जा सकता और इस विषय में महर्षि वशिष्ट और महात्मा बुध की कथा प्रमाण है ! योगिनी तंत्र में ऐसा उल्लेख आता है कि बिना मकार पूजा के योगिनी का सिद्ध होना असंभव है तो निखिलेश्वरानंद ने दस महाविद्या कहा से सिद्ध कर ली ? मतलब साफ़ है कि यह कथा भी उन्होंने अपने महिमामंडन के लिए ही रची है !
5.
क्या निखिलेश्वरानंद को महाकाली अथवा महाकाली के सबसे उग्र कहे जाने वाला रूप कामकला काली सिद्ध थी ?इनकी पुस्तक “मंत्र रहस्य” के पेज नो. 280. और 281. पर इन्होने माँ कामकला काली का वर्णन किया है ! क्या इन्होने वास्तव में माँ कामकला काली सिद्ध की थी या तंत्र शास्त्र से उठाकर अपनी पुस्तक में छाप दिया ? कौलमार्ग के अनुसार माँ कामकला काली की सिद्धि वही कर सकता है जो पंच मकारों का सेवन करता है और जिसे चक्र पूजन का ज्ञान हो ! इस शक्ति के विषय में कहा जाता है कि यह शक्ति ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्ति है , इनकी उपासना इंद्रा वरुण महाकाल आदि देवता करते है ! केवल इतना ही नहीं महापंडित रावण ने भी इनकी उपासना की थी ! यदि इनके शिष्यों की माने तो इन्हें कामकला काली सिद्ध थी !
यदि हमारे तंत्र शास्त्रों में महाकाल संहिता को पढ़ा जाए तो महाकाल संहिता के कामकला खंड में साफ़ साफ़ कहा है कि ब्राह्मण और वैश्य इस विद्या को सिद्ध करने के अधिकारी ही नहीं है यह विद्या केवल क्षत्रिय और शुद्र ही सिद्ध कर सकते है ! अब अधिकतर लोगों का प्रशन होगा कि महापंडित रावण ने इस विद्या को कैसे सिद्ध कर लिया तो भाई रावण में आधे गुण राक्षसों के थे और आधे ब्राह्मण के ! पर यहाँ तक मैं जानता हूँ नारायण दत्त श्रीमाली ब्राह्मण थे तो क्या शिव और शक्ति का संवाद झूठा हो गया ? क्या यह भी एक कपोल कल्पित कथा है जो लोगों को अपनी और आकर्षित करने के लिए रची गयी ?
6.
क्या नारायण दत्त श्रीमाली पारद संस्कार द्वारा स्वर्ण का निर्माण करना जानते थे ?यदि नारायण दत्त श्रीमाली पारद संस्कार द्वारा स्वर्ण का निर्माण करना जानते थे तो दीक्षा के नाम पर लोगों से मोटी रकम क्यों वसूलते थे ? क्यों मनघडंत यंत्र और माला को महंगे दामों पर बेचते थे ? एक बात यहाँ बताना चाहूँगा कि वह जिन यन्त्र और मालाओं का जिक्र अपनी साधनाओं में करते थे उसका जिक्र हमारे तंत्र शास्त्रों में आता ही नहीं ! उनके द्वारा दिए जाने वाले अधिकतर यन्त्र केवल कपोल कल्पित होते है !
यदि वास्तव में वह स्वर्ण निर्माण जानते थे तो ज्ञान प्रसार के लिए अपनी पत्रिका मुफ्त क्यों नहीं बाँट दी ? क्यों यन्त्र माला के लिए मोटी रकम लेते थे ? क्यों हर दीक्षा के लिए मोटी रकम वसूली जाती थी ? क्यों शक्तिपात के लिए अलग से पैसा लिया जाता था ? क्या उन्हें धन का इतना लोभ था ? यदि वह लोभी थे तो परमहंस कैसे हो सकते है क्योंकि परमहंस वही हो सकते है जो लोभ से मुक्त हों जैसे रामकृष्ण परमहंस, और वामाखेपा जी !
एक बार गुरु नानक जी को उनके पिता ने २० रूपए देकर कहा कि सच्चा सौदा करके आओ और उन्होंने उस २० रुपये से भूखे साधुओ को भोजन करवाया और कहा मैंने सच्चा सौदा कर दिया ! धन्य है गुरु नानक देवजी जो स्वयं ईश्वर है ! उन्होंने धन से अधिक संत सेवा को महत्व दिया और एक तरफ यह तथाकथित सिद्ध निखिलेश्वरानंद है जो स्वयं को ईश्वर-तुल्य बतलाता है और लोगों को धर्म के नाम पर धन इकठ्ठा करता था ! इन तथ्यों के अनुसार वह स्वर्ण बनाना तो नहीं जानते थे परन्तु भोली भाली जनता को ठगना अवश्य जानते थे !
7.
क्या नारायण दत्त श्रीमाली त्रिकाल दर्शी थे ?यदि वह सच में त्रिकालदर्शी सिद्ध थे तो जिस वक़्त उनके घर पर आयकर विभाग ने रेड मारी तो कहा चला गया था उनका त्रिकाल ज्ञान ? क्या हुआ था उनके फलित ज्योतिष को ? कहा चली गयी थी उनकी सिद्धाश्रम की सभी सिद्धियाँ ? क्यों वह बेहोश होकर गिर गए थे ? इस विषय में हमने RTI ( Right To Information ) फाइल किया है ! रिपोर्ट आते ही हम इस पाखण्ड के विषय में सभी अखबारों और पत्रिकाओं को प्रेस नोट देंगे ताकि इनके फैलाए हुए पाखण्ड का खुलासा जनमानस के सामने हो !
8.
बहुत से लेखकों ने यह दावा किया है कि नारायण दत्त श्रीमाली ने उनके लेख चुराये और उनके हस्तलिखित ग्रन्थ ले गए और कभी वापिस नहीं किये !इस विषय पर चंडी प्रकाशन ने एक लेख प्रकाशित किया था जो मैं अपने आने वाले लेखों में चित्र सहित दूंगा ! यहाँ मैं नारायण दत्त श्रीमाली के एक शिष्य की करतूत दिखाना चाहूँगा जो उन्होंने अपने गुरु का महिमामंडन करते हुए चोरी की है
इस लिंक में दी गयी साधना एक नाथ पंथी साधना है जो इसी साईट से चुरायी गयी है और अपने गुरु की फोटो लगाकर सिद्धाश्रम के नाम से छपी गयी है ताकि और लोगों को सिद्धाश्रम के नाम पर ठगा जा सके !
9.
इन्होने उतराधिकारी अपने पुत्रों को घोषित किया !जितना बड़ा यह अपने आप को सिद्ध बताते है , उसी प्रकार की बड़ी बड़ी कथाएँ इन्होने अपने विषय में रच रखी है ! इनकी किताब “मंत्र रहस्य” के पेज नो. 35. और 36. को देखे ! यहाँ नारायण दत्त श्रीमाली ने स्वयं को स्वामी प्रव्रज्यानन्द का उतराधिकारी घोषित किये जाने वाली कथा का वर्णन किया है ! इस कथा के अनुसार स्वामी प्रव्रज्यानन्द जी ने जिस समय नारायण दत्त श्रीमाली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया उस समेत उन्होंने सूर्य मंत्र द्वारा अग्नि को प्रज्वलित किया, वरुण देव का आवाहन कर उन्हें स्नान करवाया और कुबेर द्वारा वस्त्र प्राप्त किये; इस प्रकार मंत्र द्वारा ही साड़ी भौतिक सामग्री प्राप्त की !
जिस समय नारायण दत्त श्रीमाली ने अपने तीनों पुत्र – अरविन्द श्रीमाली, कैलाश चन्द्र श्रीमाली और नन्द किशोर श्रीमाली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया क्या उन्होंने भी मंत्र द्वारा सभी भौतिक सामग्री प्राप्त की या वह इस प्रकार भौतिक सामग्री प्राप्त करने में समर्थ नहीं थे ?
क्या यह कहानी भी एक कपोल कल्पित कथा है जो महिमामंडन के लिए रची गयी है ?
10.
Youtube के एक विडियो में नारायण दत्त श्रीमाली ने कहा है कि मैं कृष्ण या बुद्ध नहीं हूँ पर मैं उन से कम भी नहीं हूँ ! मतलब उसने अपने आप को सीधे सीधे ईश्वर साबित करने का प्रत्यन किया है !इस विषय पर मैं यह कहना चाहूँगा कि भगवान् श्री कृष्ण स्वयं ईश्वर थे और उन्होंने गीता जैसा महान ज्ञान सारी मानवता को दिया और उनके इस ज्ञान को जीवन में उतारकर अनेकों संत महान बन गए ! कृष्ण जी यन्त्र माला बेचने वाले व्यापारी नहीं थे , और ना ही उनके विषय में कहने वाली कथाएँ कपोल कल्पित है , वह सनातन धर्म के मूल है ! इसी प्रकार भगवान बुद्ध ने सारी दुनिया को निर्वाण का मार्ग दिखाया ! आज बौद्ध धर्म विश्व का चौथा सबसे बड़ा धर्म है पर इस नारायण दत्त श्रीमाली ने मोक्ष की बात ही नहीं की बल्कि अपने शिष्यों को सिद्धियों के जाल में फँसाया , यक्षिणी अप्सरा आदि की लुभावनी साधनाओं का प्रचार किया !
एक गुरु गोबिंद सिंह जी थे जिन्होंने अपने सारे परिवार को सनातन धर्म के लिए कुर्बान कर दिया और फिर भी उन्होंने कहा कि -
” जो मुझे परमेश्वर उचरे , सों नर घोर नरक में पडे “
मेरे पास नारायण दत्त श्रीमाली की केवल एक ही किताब थी जो मुझे एक मित्र से प्राप्त हुई ! मैंने उनकी बाकी किताबे भी आर्डर कर दी है, जल्द ही उनका भी मंथन करूँगा और इनके पाखंड का पर्दाफाश कर दूंगा ! इसके अलावा मैंने RTI भी फाइल किया है , जवाब मिलते ही इनका विरोध और तेज कर दिया जायेगा और अखबारों एवं पत्रिकाओं द्वारा इनके प्रति लोगों को जागरूक किया जायेगा !
मेरा यह लेख उन सभी निखिल शिष्यों के मुंह पर तमाचा है जो अन्य सम्प्रदायों की निंदा करते है और उन्हें गालियाँ देते है ! मेरे इस थप्पड़ की गूंज हमेशा उनके कानो में गूंजती रहेगी क्योंकि मेरे द्वारा लिखे इन प्रश्नों का उत्तर वो कभी नहीं दे पायेगे ! जब उनका गुरु ही अपने द्वारा लिखी हुई किताब से मुकर गया तो उनके शिष्य अब क्या उत्तर दंगे !
मैं तमाम हिन्दू संगठनों से अपील करता हूँ कि हिन्दू धर्म के देवी देवताओं को अपने चरणों में लोटने वाला बताने वाले और स्वयं को ईश्वर तुल्य पाखंडियों का विरोध करे ….
जय सदगुरुदेव ..!!
7 comments
Haram khor
Mai sina thok ke kahta hu ki nikhleswara nand jaisa vyaktitva koi nahi hai
Mai andhere me nahi bolnraha hu ajmaya hai anubhutiya hui hai aur mahsus kiya hai is lekh ko is liye likha kyu ki tum pahle unse jude aur kuch mila nahi to likh diya pahle apni kamiyo ko dur karfe aur dekhte ki kya hai wo sakti to sayad ehsash ho jata unki saktiyo ka
Mai sina thok ke kahta hu ki nikhleswara nand jaisa vyaktitva koi nahi hai
Mai andhere me nahi bolnraha hu ajmaya hai anubhutiya hui hai aur mahsus kiya hai is lekh ko is liye likha kyu ki tum pahle unse jude aur kuch mila nahi to likh diya pahle apni kamiyo ko dur karfe aur dekhte ki kya hai wo sakti to sayad ehsash ho jata unki saktiyo ka
100% shahi kar rahe hai ye
Virodh jari rakhye ham aap ke shat hai jai shri mahakaal
Bhiya me apse sampark krna chahta hun plz koi tarika btaye bahut jaruri jai ya number dijiye
Chutiya aadmi pahle aache se adhyan kar purano ka aadha adura gyan leke baitha hain sale harami . Khud ki aukat nahi h Or Gurudev ko badnaam karta h
Mera bhai aur usaka dost iske chakkar me fas gaye the,4-5 saal gavane ke baad ,thak kar apne jivan me busy ho gaye
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