जरग का मेला चैत्र मास के पहले मंगलवार को मनाया जाता है ! यह मेला माता मदानन और माँ शीतला को मनाने के लिए मनाया जाता है ! माता मदानन और माता शीतला के रुष्ट हो जाने पर चेचक का रोग हो जाता है ! इस रोग से व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है ! यह मेला गाँव जरग तहसील पायल जिला लुधियाना में मनाया जाता है ! पंजाब के बड़े मेलों में जरग के मेले का नाम आता है, ऐसी कोई मनोकामना नहीं है जो माँ भगवती पूर्ण ना करती हो !
इस स्थान पर किसी समय में एक तालाब हुआ करता था जिसे पंजाबी भाषा में टोबा कहते है , उस तालाब के गंदे पानी में लोग सात बार मिट्टी निकालते थे पर अब यह तालाब लुप्त हो चुका है ! अब लोग मंदिर के आसपास की मिटटी में पानी डालकर सात बार मिट्टी निकालते है ! सबसे पहले माता मदानन का दर्शन किया जाता है , माता मदानन के एक तरफ भैरव और दूसरी तरफ हनुमान जी स्थापित है ! माता मदानन को लोग मसानी माता भी कहते है , उसके बाद माँ काली का दर्शन किया जाता है ! मंदिर में एक तरफ बाबा फरीद जी का स्थान है यहाँ पर मुस्लिम फ़क़ीर बैठे है !
माता मदानन के दर्शन करने के बाद लोग बाबा फरीद जी का दर्शन करते है और फिर मंदिर के दूसरी तरफ छोटी माता जिन्हें माँ बसंती भी कहते है उनका दर्शन करते है और अंत में माँ शीतला का दर्शन किया जाता है ! इस पूजा में रात को गुलगुले बनाये जाते है और सात प्रकार का अनाज रात को पानी में भिगोकर रख दिया जाता है ! इस सात प्रकार के अनाज में दुब ( पूजा में इस्तेमाल होने वाली घास ) मिलाकर मंदिर जाया जाता है , मंदिर जाकर श्रद्धालु सबसे पहले मंदिर के दरवाजे के दोनों तरफ सात प्रकार के अनाज और दुब डालते है और फिर गुलगुले , श्रृंगार आदि माँ मदानन माँ काली माँ बसंती और माँ शीतला को अपनी अपनी पारम्परिक मान्यता के अनुसार चढाते है ! इस प्रकार की पूजा को बासड़ धुखाना भी कहते है क्योंकि इस पूजा में केवल बासी चीजे ही इस्तेमाल की जाती है !
इस स्थान पर गधे का पूजन भी किया जाता है क्योंकि गधा माँ शीतला की सवारी है ! कुछ लोग इस स्थान पर भेड़ बकरी और मुर्गे आदि भी चढ़ाकर जाते है ! तांत्रिक लोग इस स्थान पर अनेको प्रकार के तांत्रिक पूजन भी करते है ! ऋद्धि सिद्धि की प्राप्ति के लिए , शत्रुओं को पराजित करने के लिए लोग माँ का दर्शन करते है क्योंकि इस स्थान पर मांगी गयी मनोकामना कुछ ही समय में पूरी हो जाती है पर यदि माँ का चढ़ावा ना दिया जाए तो माँ रुष्ट हो जाती है और भयंकर परिस्थितिओं का सामना करवाती है ! मुस्लिम लोग माता मदानन का पूजन अम्मा मदानन कहकर करते है !
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार गुगा जाहरवीर गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे , जब उनका युद्ध अपने ही चचेरे भाइयों अर्जन सर्जन के साथ हुआ तो उन्होंने जरग में आकर माँ मदानन का दर्शन किया और माँ से विजय के लिए प्रार्थना की ! माँ ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया एवं सूक्ष्म रूप से उनकी सहायक हुई ! माँ मदानन के हुकुम से उलटी माई ने चील का रूप धारण कर गुगा जाहरवीर की मदद की !
जिनका पूजन स्वयं जाहरवीर बाबा करते है, उनका पूजन कर हम अपनी मनोकामना क्यों न पूर्ण करे ?
पंजाब की लोक गीतों में यह बोली प्रचलित है -
पीर फकीर धयामा दातिये पीर फकीर धयामा
लाला वाले दे रोट दिया हैदर शेख दे देमा बकरे
इस स्थान पर किसी समय में एक तालाब हुआ करता था जिसे पंजाबी भाषा में टोबा कहते है , उस तालाब के गंदे पानी में लोग सात बार मिट्टी निकालते थे पर अब यह तालाब लुप्त हो चुका है ! अब लोग मंदिर के आसपास की मिटटी में पानी डालकर सात बार मिट्टी निकालते है ! सबसे पहले माता मदानन का दर्शन किया जाता है , माता मदानन के एक तरफ भैरव और दूसरी तरफ हनुमान जी स्थापित है ! माता मदानन को लोग मसानी माता भी कहते है , उसके बाद माँ काली का दर्शन किया जाता है ! मंदिर में एक तरफ बाबा फरीद जी का स्थान है यहाँ पर मुस्लिम फ़क़ीर बैठे है !
माता मदानन के दर्शन करने के बाद लोग बाबा फरीद जी का दर्शन करते है और फिर मंदिर के दूसरी तरफ छोटी माता जिन्हें माँ बसंती भी कहते है उनका दर्शन करते है और अंत में माँ शीतला का दर्शन किया जाता है ! इस पूजा में रात को गुलगुले बनाये जाते है और सात प्रकार का अनाज रात को पानी में भिगोकर रख दिया जाता है ! इस सात प्रकार के अनाज में दुब ( पूजा में इस्तेमाल होने वाली घास ) मिलाकर मंदिर जाया जाता है , मंदिर जाकर श्रद्धालु सबसे पहले मंदिर के दरवाजे के दोनों तरफ सात प्रकार के अनाज और दुब डालते है और फिर गुलगुले , श्रृंगार आदि माँ मदानन माँ काली माँ बसंती और माँ शीतला को अपनी अपनी पारम्परिक मान्यता के अनुसार चढाते है ! इस प्रकार की पूजा को बासड़ धुखाना भी कहते है क्योंकि इस पूजा में केवल बासी चीजे ही इस्तेमाल की जाती है !
इस स्थान पर गधे का पूजन भी किया जाता है क्योंकि गधा माँ शीतला की सवारी है ! कुछ लोग इस स्थान पर भेड़ बकरी और मुर्गे आदि भी चढ़ाकर जाते है ! तांत्रिक लोग इस स्थान पर अनेको प्रकार के तांत्रिक पूजन भी करते है ! ऋद्धि सिद्धि की प्राप्ति के लिए , शत्रुओं को पराजित करने के लिए लोग माँ का दर्शन करते है क्योंकि इस स्थान पर मांगी गयी मनोकामना कुछ ही समय में पूरी हो जाती है पर यदि माँ का चढ़ावा ना दिया जाए तो माँ रुष्ट हो जाती है और भयंकर परिस्थितिओं का सामना करवाती है ! मुस्लिम लोग माता मदानन का पूजन अम्मा मदानन कहकर करते है !
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार गुगा जाहरवीर गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे , जब उनका युद्ध अपने ही चचेरे भाइयों अर्जन सर्जन के साथ हुआ तो उन्होंने जरग में आकर माँ मदानन का दर्शन किया और माँ से विजय के लिए प्रार्थना की ! माँ ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया एवं सूक्ष्म रूप से उनकी सहायक हुई ! माँ मदानन के हुकुम से उलटी माई ने चील का रूप धारण कर गुगा जाहरवीर की मदद की !
जिनका पूजन स्वयं जाहरवीर बाबा करते है, उनका पूजन कर हम अपनी मनोकामना क्यों न पूर्ण करे ?
पंजाब की लोक गीतों में यह बोली प्रचलित है -
पीर फकीर धयामा दातिये पीर फकीर धयामा
लाला वाले दे रोट दिया हैदर शेख दे देमा बकरे
अर्थात लाला वाले पीर बाबा सखी सुल्तान जी और बाबा हैदर शेख जी की पूजा से जो नहीं मिलता वो
भी देवी खुश होकर दे देती है!
भी देवी खुश होकर दे देती है!
जय माँ मदानण ..!! जय माँ शीतला ..!! आईये हम भी माँ की कृपा प्राप्त करे और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करे ..!!
जय सदगुरुदेव ...!!
जय सदगुरुदेव ...!!
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