Friday, 21 October 2016

संत की महिमा 1

गुरु ग्रन्थ साहिब में लिखा है की संत की महिमा वेद जाने और तुलसीदास जी ने भी लिखा है कि प्रथम भक्ति संतन कर संगा !! आज मैं एक ऐसे ही संत कि बात कर रहा हूँ जो साक्षात् भगवान शिव का ही अंश थे!उनके बारे में अगर यह कहा जाये के गुरु गुड और चेला शक्कर तो गलत होगा! अपने जीवन में मैं कई संतो से मिला हर संत से मुझे कुछ कुछ मिला पर सिद्ध रक्खा राम जी से मिलकर मैं निहाल हो गया!  सिद्ध रक्खा राम जी एक पहुंचे हुए संत थे उनका सम्बन्ध नाथ संप्रदाय से था!  सिद्ध रक्खा राम जी का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ थाउनके तीन भाई और दो बहने थीआपके पिताजी का नाम बालू रामजी था!  वे एक व्यापारी थे और मिस्र से सामान लाकर 
भारत में बेचते थे और भारत से मसाले मिस्र को ले जाते थे!  सिद्ध रक्खा राम जी बाबा देवीगर जी के वंशज थे!  बाबा देवीगर जी अघोर पंथ के एक पहुंचे हुए संत थे!  बाल्यकाल से ही सिद्ध रक्खा  राम जी भक्ति में लीन रहते थे!  थोड़े बड़े होने पर उन्होंने सिद्ध टूंडी लाट जी से दीक्षा ले लीइश्वर भक्ति में लीन देखकर उनकी माता नाराती जी ने उनकी शादी करवा दी किन्तु सिद्ध रक्खा राम जी पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ा और वह प्रभु भक्ति में लगे रहे!  एक बार गाँव के कुछ लोगों ने उनसे कहा कि   तुम ढोंग करते हो यदि कुछ जानते हो तो कारामत दिखाओयह सुनकर उन्होंने पास में बहती हुई नदी की  तरफ ऊँगली से इशारा किया और नदी के दो टुकड़े हो गए और नदी में से एक देवता प्रकट हुए 
और देवता ने कहा रविवार को पुष्य नक्षत्र है और उस दिन सट्टे का नंबर १९ आएगा!  यह देखकर सभी 
लोग हैरान हो गए और रविवार को १९ नंबर आया!  इस करामात के बाद तो दूर दूर तक उनका प्रचार हो गयावे जिसे जो कह देते वह सत्य हो जाता और उनके पास हर समय लोगों का मेला लगा रहतायदि कोई गरीब उनके पास मदद के लिए आता तो वे अपनी झोली ही तरफ इशारा कर देते और कह देते जितनी जरुरत है उतने पैसे ले लो झोली में पैसे कहांसे आते यह किसी को पता नहीं था! उनके दो बेटे और एक बेटी थीबेटे बचपन में ही मर गए और थोड़ी बड़ी होने पर उन्होंने बेटी कि शादी कर दीबेटी कि शादी के कुछ समय बाद उनकी पत्नी चल बसी जब पत्नी कि मृत्यु हुयी तो उन्होंने कहा इश्वर भक्ति में एक बाधा थी अब वोह भी नहीं रहीपत्नी कि क्रिया करने के बाद वे राजस्थान चले गए और दीन दुखिओं के दुःख दूर करने लगेएक बार उनके पास एक आदमी आया उसकी बहिन कई वर्षों से वीमार थीजो भी तांत्रिक इलाज के लिए आता वे थोड़े दिनों में मर जाताजब महिला को बाबाजी के पास लाया गया तो बाबाजी ने उसे गलियां दी और वे ठीक हो गयीइस कारामत के बाद वे राजस्थान में प्रसिद्द हो गएप्रसिद्धि को भक्ति में बाधा समझकर वे वहां से चलकर गोरख टीला ददरेवा राजस्थान चले गए और इश्वर भक्ति करने लगेकुछ साल वहीँ पर रहे और अपनी माता कि मृत्यु के बाद पंजाब  वापिस गए!  एक बार एक तांत्रिक ने इर्षा वश उन पर प्रयोग कर दिया और पटवेरी(एक प्रकार कि चुडेल जिसके पैर उलटे होते हैं और छाती बहुत बड़ी होती है और दांत बड़े होते हैं)
भेजदी!  बाबाजी उस समय आग के पास बैठे आग सेक रहे थे उनके पास कुछ और लोग भी बैठे थेतभी अचानक दरवाज़ा खुल गया ठण्ड के दिन थेउन्होंने एक आदमी से कहा जाओ जाकर दरवाज़ा बंद कर दो जब वे आदमी दरवाज़ा बंद करने गया तो उसके सामने पट्वेरी खड़ी हुई वे डर गया और चिल्लाता हुआ बाबाजी कि तरफ भगा!  बाबाजी डंडा लेकर पट्वेरी के पीछे भागे और पट्वेरी घर के तीन चक्र लगाकर गायब हो गयी!सब लोग बाबाजी को प्रणाम करने लगे जब लोगों को इस बात का पता चला तो उनके जहाँ हर रोज मेला लगने लगालोगों से तंग आकर वे बाबा नमोनाथ जी के डेरे जा बैठे!  जब मैं उनसे मिला तो मैं बहुत छोटा था मैं उनके पास नए नए सवाल लेकर जाता और वे हस्ते हुए उनका उत्तर दे देते तब मैं सोचता था ऐसा कैसे हो सकता है सब लोग झूठ बोलते हैं कोई इतना करामाती कैसे हो सकता हैएक बार मेरी परीक्षा थी और मुझे कुछ नहीं आता था मैं परेशान था तभी बाबाजी गए और बोले कि परेशान मत हो तू एक दिन बहुत बड़ा वकील बनेगा मैंने कहा मैं तो विज्ञानं का छात्र हूँ मैं तो इंजिनियर बनूंगा वे बोले नहीं तू लाल बत्ती वाली 
गाडी में घूमेगा!  मैंने कहा आपको तो हवा में बात करने कि आदत हैउन्होंने ऊँगली से दीवार की तरफ इशारा किया और दीवार पर एक परछाई बन गयी और उस परछाई ने मुझे मेरा सारा परीक्षा पत्र बता दियाइस कारामत के बाद तो मैं उनका भक्त हो गया!  १५ मार्च २००४ के दिन मैं उनके चरण दबा रहा थाउन्होंने मुझसे कहा कि एक नयी कापी लेकर आयो मैं ले आया जब सब लोग चले गए तो  उन्होंने मुझे बहुत से मन्त्र लिखाये और कहा मैं दो दिन बाद चला जाऊँगा!  मैंने सोचा किसी तीरथ पर जाने कि बात कर रहे होंगे,फिर उन्होंने अपने शारीर के सभी अंग अलग अलग कर दिए मैं हैरान हो गया कुछ देर बाद वे फिर से जुड़ गए और मुझसे कहा दोनों हाथ आगे करो मैंने हाथ आगे कर दिए!  उन्होंने अपने हाथों में जल लेकर मेरे हाथों में छोड़ दिया ऐसा उन्होंने तीन बार कियामैंने तीनो बार जल पी  लिया ऐसा उनका आदेश था!  उन्होंने मुझे कहा अब तुम सो जाओ और जो सपना आये वो किसी से मत कहना!  मैं चला गया ठीक १८ मार्च २००४ को जब मैं सो कर उठा तो मेरी माताजी ने मुझे बताया कि सिद्ध रक्खा रामजी ने आज सुबह एक खून कि उलटी की और ब्रह्मलीन हो गएमैं कई दिन तक रोता रहा कि उनकी बात को समझ नहीं पाया फिर एक दिन 
सपने में उनके दर्शन हुए!  उन्होंने मुझसे कहा मेरी फ़िक्र छोड़ इश्वर भक्ति कर मैं सदा तेरे पास हूँ!  आज साल बाद लिखते हुए मुझे ऐसा लग रहा है कि लिख तो मैं रहा हूँ पर लिखवाने वाले वे स्वयं है!  मुझ पर एक मुक़दमा हुआ और मुक़दमा जीतने के बाद मेरा रुझान वकालत की तरफ बढ़ गया और मैं वकालत करने लगा!  आज मैं वकालत का छात्र हूँ और मैं मानता हूँ कि उनकी बात सत्य हुयी
मैं आज भी उनका नाम लेकर यदि उनके बताये हुए किसी भी मन्त्र का प्रयोग कर दूं तो निश्चित तौर पर सफल होता हूँ और हैरानी की बात यह है की मैंने उनमे से कई मन्त्रों को सिद्ध भी नहीं किया!  यह उनकी प्रचंड भक्ति का फल है!  बाबा नानक जी ने सच ही कहा है 
               साधू बोले सहज सुबाह
               साधू का कहा विरथा जा 
धन्य है वो लोग जिन्होंने सिद्ध रक्खा राम जी के दर्शन किये!

जय सदगुरुदेव

1 comments so far

Unka apne sharir ke ang alag-alag karne ka matlab unka ang rupi gyan charo disha me faile,karya kare..
Mere hisab se.


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