Friday, 21 October 2016

संत की महिमा 2

सिद्ध रक्खा रामजी एक पहुचे हुए सिद्ध थे! उन्होंने सर्वप्रथम सिद्ध टुंडी लाट जी से दीक्षा ली! सिद्ध टुंडी लाट जी नाथ संप्रदाय से सम्बन्ध रखते थे !उनके बहुत से शिष्य मुस्लिम भी थे!एक बार उनके मुस्लिम शिष्यों ने कहा आप हमसे ज्यादा प्रेम अपने हिन्दू शिष्यों को करते है तो सिद्ध टुंडी लाट जी ने कहा ऐसा कुछ  भी नहीं है!मै हिन्दू और मुस्लिम में कोई भेद भाव नहीं समझता, यह सुनकर उनके मुस्लिम शिष्यों ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो आप कलमा पढ़ ले और इस्लाम कबूल कर ले! भेद भाव से ऊपर सिद्ध टुंडी लाट जी ने  "शेर शाह वली " जी के पास जाकर कलमा पढ़कर इस्लाम कबूल कर लिया! " शेर शाह वली " एक पहुचे हुए फकीर थे,उनका सम्बन्ध सातवे कादरी खानदान से था! जब सिद्ध टुंडी लाट जी ने इस्लाम कबूल किया तो उन्होंने सिद्ध रक्खा रामजी से कहा कि मैंने इस्लाम कबूल कर लिया है, अब आप " अघोर पीर बाबा नमोनाथ " जी के पास जाएं और नाथ संप्रदाय की इस महान परम्परा को आगे बढ़ाये! सिद्ध रक्खा राम जी गुरु आज्ञा का पालन करते हुए अघोर पीर बाबा नमोनाथ जी के पास गए ! अघोर पीर बाबा नमोनाथ जी बहुत पहुचे हुए सिद्ध थे! उनके विषय में अनेक कथाये प्रचलित है ! अघोर पीर बाबा नमोनाथ जी पंजाब के जिला पटियाला के गाँव मलकपुर चोपदारा के डेरे में रहते थे! उनका सम्बन्ध " आई पंथ " से था और वे गोरख अवतार बाबा " मस्तनाथ " जी की महान परम्परा से थे!  इस परम्परा में आने वाला एक साधारण योगी भी महान होता है! 


आपका जन्म पिता वरियाम सिंह और माता जिन्द कौर के घर गाँव डूडीयां तहसील मुनक जिला संगरूर में हुआ थाआपका बचपन का नाम धर्म सिंह था! आपका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था और आपका बचपन बहुत गरीबी में गुजरा था!जब बाबा नमोनाथ जी की आयु नौ दस वर्ष की थी तो उनके पिताजी ने गाँव के एक ज़मींदार से कुछ रुपये लिए और बदले में बाबा नमोनाथ जी को एक साल के लिए उस ज़मींदार के पास मजदूरी करने के लिए छोड़ दिया! बाबा नमोनाथ जी को साथ लेकर ज़मींदार जंगल में गया और उनसे बबूल के पेड़ की कांटेदार लकडिया इकट्ठी कर उनका बठल बनाने को कहा, जब बठल बन गया तो उस बठल को ज़मींदार ने बाबाजी के सर पर रखवा दिया और स्वयं आगे आगे चल पड़ा और बाबाजी पीछे पीछे आने लगे ! बाबाजी के सिर से लकडियो का बठल कुछ ऊँचा चल रहा था ताकि बाबाजी के सिर पर कोई वजन आये! ज़मींदार को इस बात का कोई ईल्म नहीं था, वे तो आगे आगे चल रहा था! उसी मार्ग से एक पुलिसवाला गुजर रहा था, जब उसने बाबाजी का यह कौतुक देखा तो हैरान रह गया! उसने आगे बढ़कर ज़मींदार को रोका और कहा यह बालक कौन है? जिससे तुम काम करवा रहे हो यह तो पूर्व जन्म का कोई संत लगता है यदि इससे काम करवाओगे तो तुम्हारा नाश हो जायेगा! यह सुनकर जब ज़मींदार ने पीछे मुड़कर देखा तो ज़मींदार हैरान रह गया! घर जाकर उन्होंने बाबाजी से हाथ जोड़कर कहा बाबाजी मुझे माफ़ करे मुझसे भूल हो गयी! मेरा और आपका हिसाब बराबर हो गया अब आप अपने घर जाये! बाबाजी ने कहा मेरे पिताजी ने आपसे एक साल के पैसे लिए है यदि मै एक साल आपका काम नहीं करूँगा तो आपका क़र्ज़ चुकाने के लिए मुझे दोबारा जन्म लेना पड़ेगा और मै मुक्ति से दूर हो जाऊंगा! यह सुनकर उस ज़मींदार ने बाबाजी के रहने के लिए उत्तम प्रबंध कर दिया और एक साल पूरा होने के बाद बाबाजी अपने घर गए और प्रभु भक्ति में लीन रहने लगे! 


जब उनके पिता को इस बात का पता चला तो वे उनके लिए गुरु की खोज करने लगे!उसी गाँव में बाबा " निहाल गिर " जी की समाधी थी, उस समाधी पर संतो का सम्मेलन था!उन संतो में " अघोर पीर बाबा शादीनाथ " जी भी आये थे!बाबा शादीनाथ जी की जमात में ३०० से अधिक शिष्य थे और वे सब हाथी घोड़ो पर सवार होकर आते थे! बाबा नमोनाथ जी के पिता वरियाम सिंह जी ने बाबा शादीनाथ जी के पास जाकर अपने पुत्र को दीक्षा देने की प्रार्थना की बाबा शादीनाथ जी मान गए और दीक्षा का दिन तय कर लिया! दीक्षा के समय बाबा नमोनाथ जी का कर्ण छेदन करने के लिए पीर शादीनाथ जी ने जब उनके कानो पर छुरी चलाई तो उनके कानो में से दूध निकला उस समय आकाशवाणी हुई कि इनका पंथ निराला होगा इस पंथ में कोई भी कर्ण मुद्रा धारण नहीं करेगा ! दीक्षा के बाद पीर शादीनाथ जी बाबा नमोनाथ जी को अपने साथ ले गए! रास्ते में पीर शादिनाथ जी ने नमोनाथ जी को भिक्षा मांगने के लिए चट्ठा नामक गाँव में भेजा, जब वे भिक्षा मांगने गए तो कुछ लोगो ने उन्हें पाखंडी समझकर बुरा भला कहा और भिक्षा देने से इंकार कर दिया ! बाबाजी बिना कुछ बोले वापिस गए और जिन लोगो ने उन्हें बुरा भला कहा था उनके खेतो में आग लग गयी !

बाबा नमोनाथ जी १२ वर्ष तक गुरूजी की सेवा करते रहे और १२ वर्ष बाद गुरु आज्ञा से धर्म प्रचार करने के लिए वापिस अपने गाँव गए और भक्ति में लीन हो गए ! उनकी बहन का रिश्ता गाँव " मूला सिंघ्वाला " जिला मानसा पंजाब में तय हुआ था! जिस लड़के के साथ उनका रिश्ता तय हुआ था उनकी आँख किसी कारण ख़राब हो गयी और वे एक आँख से काणे हो गए!जब बाबाजी के भाइयो को इस बात का पता चला तो वे रिश्ते से इंकार करने लगे!जब बाबा नमोनाथ जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने भाइयो से कहा अगर कल को हमारी बहन एक आँख से काणी हो गयी तो क्या करोगे? दुसरे दिन उनकी बहन जब सो कर उठी तो वे सच्च में काणी हो गयी थी!यह देखकर उनके भाइयो ने रिश्ता नहीं तोडा और उनकी बहन की शादी उसी लड़के से कर दी!

बाबाजी के गाँव में एक तालाब था!उस तालाब में गाँव के सभी लोग स्नान करते थे पर गाँव में एक " योद्धा " नामक महाज्ञानी पण्डित रहता था!सबसे पहले तालाब में वो स्नान करता था फिर अन्य गाँव वाले स्नान करते थे!एक दिन बाबा नमोनाथ जी ने योद्धा पण्डित से पहले उस तालाब में स्नान कर लिया जब योद्धा पंडित आया और उसने बाबाजी को स्नान करते देखा तो गुस्से से बोला, नाथ पंथ से दीक्षित होने के बाद क्या तू हमसे बड़ा हो गया? इस पर बाबाजी ने कहा भाई नाथ बड़े है वैष्णव बड़ा तो वो है जो ईश्वर की भक्ति करता है!यह सुनकर योद्धा पण्डित आग बबूला हो गया और उसने बाबा नमोनाथ जी से कहा यदि तू इतना ही बड़ा भक्त है तो कुछ हमें भी दिखा!इस पर बाबाजी ने कहा अगर आप बड़े है तो आप ही कुछ दिखा दो!यह सुनकर योद्धा पण्डित ने बाबा नमोनाथ जी को विष्णु भक्त ध्रुव जी के दर्शन करवा दिए और बाबाजी से कहा अब तुम्हारी बारी है!बाबाजी ने योद्धा पण्डित से कहा आप अब डरकर मत भागना और उन्होंने अपने अन्दर भगवान विष्णु जी के विराट स्वरुप के दर्शन करवा दिए!उनका यह रूप देखकर योद्धा पण्डित उनके पैरों पर गिर गया और क्षमा मांगने लगा !

बाबा नमोनाथ जी के गाँव के नजदीक एक " बुरज " नामक गाँव था, वहां बाबा नमोनाथ जी ने सूर्य देव की उपासना की तो उनके तप के प्रभाव से सूर्य देव उन्हें दर्शन देने के लिए धरती पर उतर आये बाबाजी सूर्य देव का दर्शन पाकर मस्त हो गए!यह देखकर बाबाजी के भाई और गाँव के लोग उन्हें पागल कहने लगे पर योद्धा पण्डित और गाँव के कुछ लोग जिन्होंने सूर्य देवता को धरती पर उतरते देखा था उन्होंने इस बात का विरोध किया और कहा बाबाजी मस्ती की अवस्था में पहुच गए है और सूर्य दर्शन की सारी हकीकत गाँव वालो को बता दी, कुछ दिनों बाद बाबाजी अपने आप ठीक हो गए!

एक बार बाबाजी गाँव " अकोई साहिब " जिला संगरूर पंजाब से गुजर रहे थे रास्ते में रेल की पटरी पर बैठ गए और ईश्वर भक्ति करने लगे! जब रेल आई तो बाबाजी वहीँ बैठे प्रभु भक्ति करते रहे, रेल अपने आप रुक गयी!जब रेल कर्मचारी बाबाजी के पास आये तो उन्हें बाबाजी में भगवान शिव के दर्शन हुए, भगवान शिव के दर्शन पाकर वे धन्य हो गए और उन्होंने यह फैसला किया कि जब तक बाबाजी इस पटरी पर बैठे है तब तक रेल नहीं चलेगी! 

बाबाजी ने धर्म प्रचार के लिए १२ वर्ष तक भारत भ्रमण किया और गाँव चौबदारा तहसील अमलोह जिला पटियाला में डेरे की स्थापना की! यहाँ उनके हजारो कि संख्या में शिष्य हुए, वे पाप पुण्य से ऊपर थे और धर्म के नाम पर भेद भाव नहीं करते थे!उनसे प्रभावित होकर बहुत से मुस्लिम और सिक्ख उनके शिष्य बन गए!बाबाजी के दर्शनों को हररोज हजारो की संख्या में लोग आते थे और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते थे! इस दुनिया को प्रेम और प्रभु भक्ति का सन्देश देकर बाबा नमोनाथ जी अगस्त २०१० को ब्रहम से जा मिले! ऐसे महान संत के दर्शनों से मै भी धन्य हो गया! मुझे आज भी याद है उन्होंने कहा था हररोज घंटे गुरुमंत्र का जप करो और चलते फिरते उठते बैठते " हरे राम हरे राम " का जप करते रहो तुम्हारी मुक्ति निश्चित है यदि भटक गए तो बार बार जन्म लेना पड़ेगा!

धन्य है वे जननी जिसने ऐसे संत को जन्म दिया! धन्य है वो धरती यहाँ बाबा नमोनाथ जी ने नर लीला की! धन्य है वे लोग जिन्होंने उनसे ज्ञान प्राप्त किया!

जय बाबा नमोनाथ जी! 
नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश!

जय सद्गुरुदेव !


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