Thursday, 20 October 2016

ज्योतिष संजीवनी 2

ज्योतिष के अनुसार गुरु ग्रह दुसरे भाव का, पांचवे भाव का, नौवे भाव का, ग्यारवे भाव का पक्का कारक है!गुरु ग्रह से अध्यातम,धर्म,लाभ,पुत्र,दादा,गु रु,भाग्य,आकस्मिक लाभ आदि को देखा जाता है!कुटुम्ब के सुख का विचार भी गुरु ग्रह से किया जाता है!ज्योतिष के अनुसार गुरु स्त्री की कुंडली में पति का कारक होता है इसलिए यदि गुरु अस्त हो जाये तो विवाह आदि शुभ कर्म तब तक नहीं किये जाते जब तक गुरु महाराज का उदय हो जाये!गुरु ग्रह को ज्ञान का कारक माना जाता है और गुरु महाराज देवताओ के गुरु है उनसे ज्ञानी नवग्रहों में कोई भी नहीं है!एक बार ब्रह्मा जी ने गुरु ग्रह और शुक्र ग्रह को बुलाया और कहा आप दोनों ही महाज्ञानी है मै जानना चाहता हूँ आप दोनों में अधिक ज्ञानी कौन है? उसी समय एक स्त्री कुए में पानी भर रही थी!उस पानी भरती हुई स्त्री को देखकर शुक्र ग्रह ने अपना ज्योतिष लगा दिया!
उसी समय उस स्त्री के हाथ से बाल्टी नीचे कुए में गिर गयी!गुरु महाराज ने उस बाल्टी के गिरने से अपना ज्योतिष लगा दिया!यह देख ब्रह्मा जी ने कहा हे गुरु महाराज आप सर्वज्ञानी है आप ही श्रेष्ठ है!गुरु ग्रह कभी किसी से शत्रुता नहीं रखते पर राहु, बुध और शुक्र इन्हें अपना शत्रु मानते है!गुरु ग्रह यदि राहु के साथ जाये तो जन्म कुंडली में गुरु चंडाल योग का निर्माण हो जाता है!गुरु यदि बुध ग्रह के साथ जाये तो व्यक्ति को खाली घड़ा बना देते है ऐसी कुंडली वाला व्यक्ति बिना मांगे राय दे देता है!उसकी राय से अनेको लोगो का भला होता है पर जब वे स्वयं कोई कार्य करता है तो उसे कोई लाभ नहीं होता!गुरु ग्रह के साथ यदि शुक्र जाये या शुक्र किसी प्रकार गुरु के सामने जाये तो शुक्र काणा हो जाता है!इस विषय में एक पौराणिक कथा है,एक बार राजा बलि ने यज्ञ का आयोजन किया!
यज्ञ में राजा बलि ने याचको को मुह माँगा दान दिया!उस यज्ञ में भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर एक याचक के रूप में आए और दान के लिए याचना की, राजा बलि ने उनसे दान मांगने के लिए कहा तो भगवान वामन ने तीन पग धरती मांगी और जब राजा बलि दान देने के लिए संकल्प ले रहे थे तभी दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें पहचान लिया और राजा बलि को दान देने से रोकने लगे, परन्तु राजा बलि नहीं माने और संकल्प लेने के लिए जलपात्र हाथ में लिया तो शुक्राचार्य जी एक कीड़े का रूप बनाकर उस जलपात्र की नली में बैठ गए!इस कारण पात्र में से जल नहीं निकल पाया पर भगवान विष्णु तो सब जानते थे उन्होंने कुशा को पात्र की नली में घुसा दिया, कुशा कीड़े का रूप धारकर बैठे शुक्राचार्य की आँख में जा लगी और मृत संजीवनी के जानकर आचार्य शुक्र काणे हो गए!इस कारण जब भी शुक्र गुरु ग्रह के साथ आये तो वे काणे हो जाते है और यदि गुरु शुक्र जन्म कुंडली में एक साथ हो या शुक्र बुरा फल दे रहे हो तो किसी काणे ब्राह्मण की सेवा करे शुक्र बुरा फल त्याग देंगे! 
गुरु यदि जन्म कुंडली में मजबूत हो तो उन घरो के फल में वृद्धि करते है जिनके वे कारक है! केतु को गुरु का सेवक माना जाता है और केतु मोक्ष का कारक है!केतु का निशान झंडे को माना जाता है यदि केतु शुभ हो तो व्यक्ति को बहुत उच्चाई पर लेकर जाता है! गुरु ग्रह यदि जन्म कुंडली में अच्छे हो तो केतु के बुरे फल में कमी आती है पर यदि गुरु ग्रह स्वयं केतु के साथ बैठ जाये तो गुरु दुषित हो जाते है!इस योग के कारण गुरु और केतु दोनों अपना शुभ फल त्याग देते है!ऐसे में हमारे विद्वान पंडित हमें डराते है पर इस योग से डरने की कोई जरूरत नहीं, यदि आपकी कुंडली में भी ऐसा ही योग है तो आप इस उपाय को करे! एक पीला बेदाग़ निम्बू ले और उसे थोडा काट दे यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि निम्बू के दो टुकड़े हो और इस निम्बू को चलते पानी में बहा दे! आप ऐसा 43 दिन लगातार करे आपका योग भंग हो जायेगा!
आप कहेगे निम्बू को पानी में बहाने से यह योग कैसे भंग हो जायेगा!आइये इस उपाय के पीछे छिपे सिद्धांत को समझे!पीले रंग को गुरु ग्रह का सूचक माना जाता है और खट्टा स्वाद केतु का सूचक है!निम्बू का रंग पीला होता है और स्वाद खट्टा जब निम्बू को थोडा सा काटकर पानी में बहा दिया जाता है तो खट्टा स्वाद अलग हो जाता है और पीला भाग अलग इस प्रकार चन्द्र अर्थात पानी की मदद से गुरु और केतु को अलग कर दिया जाता है!इस उपाय का प्रयोग मैंने कई बार किया है आप भी आजमाए और इस उपाय से जनकल्याण करे!
जय सदगुरुदेव!


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