गुरु पूर्णिमा का इंतज़ार किसे नहीं होता प्रत्येक शिष्य जो अपने गुरुदेव से प्रेम करता है उसे गुरु पूर्णिमा का इंतज़ार रहता है कि मुझे गुरूजी का पूजन करने का सुअवसर प्राप्त होगा और इंतज़ार हो भी क्यों न? केवल गुरुदेव ही है जो शिष्य का कल्याण करने में समर्थ है!ब्रह्मा विष्णु और शिव चाहे सारी सृष्टि ही क्यों न रूठ जाये यदि गुरुदेव का वरदहस्त आपके सिर पर है तो आपको तरने से कोई नहीं रोक सकता, यदि गुरुदेव की कृपा न हुयी तो आपको शिव भी नहीं तार सकते और यदि गुरुदेव की कृपा हो गयी तो आपका भगवन शिव भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि गुरु रूप में स्वयं भगवान शिव ही आपके सम्मुख है!गुरु चाहे तो एक ही पल में आपको संसार सागर से पार लगा देंगे इसलिए कहा जाता है " तीन लोक नौ खंड में गुरु से बड़ा न कोए " मेरे गुरुदेव " सिद्ध रक्खा राम जी " जैसा कोई नहीं गुरु की तुलना तो सूर्य से करना भी व्यर्थ है सूर्य अपने तेज से सब कुछ भस्म कर देता है पर गुरु रुपी सूर्य का तेज तो सृष्टि के इस सूर्य से हजारो गुना अधिक है फिर भी वे शिष्य को भस्म नहीं करते केवल अपने शिष्य के जन्म जन्मान्तर के पापो को ही भस्म करते है!गुरु की तुलना चंद्रमा से करना भी व्यर्थ है चंद्रमा पर तो दाग है पर गुरु तो मुझ जैसे दागदारो को भी बेदाग़ कर देते है!गुरु की तुलना करना ही व्यर्थ है गुरु तो केवल गुरु है गुरु को शब्दों में बांधना संभव नहीं इसलिए कहा गया है " गुरु गूंगे गुरु बाबरे गुरु के रहिये दास,गुरु जो भेजे नरक को स्वर्ग की रखिये आस " गुरु गूंगे हो या पागल हो शिष्य के लिए वो ईश्वर से कम नहीं और जो शिष्य गुरु को साधारण मनुष्य मानता है,गुरु को ईश्वर नहीं मानता उसका नरक जाना तो संभव है!हमारे धर्म ग्रंथो में साफ़ साफ़ लिखा है कि गुरु कैसा भी हो शिष्य के सामने गुरु की निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि गुरु कैसा भी हो शिष्य के लिए वो ईश्वर ही है!गुरु कृपा का फल अनंत है इसलिए कहा गया है " तीर्थ नहाये एक फल संत मिले फल चार,सद्गुरु मिले अनंत फल कहे कबीर विचार " एक बार मैंने " बाइबल " में पढ़ा कि मानव में ईश्वर और शैतान दोनों के गुण होते है निर्भर करता है मानव किस गुण को विकसित करता है!मैंने सोचा क्यों न गुरुदेव से यह पुछा जाये कि ईश्वर के गुण कैसे विकसित होते है!मेरे प्राणाधार गुरुदेव से क्या छिपा था!मैंने गुरुदेव से जाकर कहा आज मैंने बाइबल पढ़ी गुरुदेव ने कहा कभी अपने आपको पढ़ा है!मैंने कहा वो कैसे पढ़ते है उन्होंने कहा बाबा बुल्लेह शाह जी कहते है " मंदिर मसीती भज भज बडदा कड़े अपने अंदर बड्या ही नहीं " मैंने कहा गुरूजी मुझे इस विषय में कुछ नहीं पता आप ही बतादो,गुरूजी ने कहा क्या करना चाहते हो!मैंने कहा गुरूजी परमात्मा का साक्षात्कार करना चाहता हूँ!गुरूजी ने कहा पहले अपना साक्षात्कार तो कर ले ईश्वर का बाद में कर लेना,मैंने कहा गुरुदेव आप रास्ता तो बताये अपना साक्षात्कार होगा कैसे!गुरूजी ने कहा अपने अंतर में ईश्वर को खोजो और भावना करो मै ही ईश्वर हूँ!मैंने कहा गुरूजी " अहम् ब्रह्मास्मि " का जप करना है? गुरुदेव ने कहा नहीं इसका जप तो सारी दुनिया करती है आपको इसकी भावना करनी है कि मै ही ब्रहम हूँ!मैंने कहा गुरुदेव मै तो उलझ गया आप ही बताये क्या करू?गुरूजी ने मुझे एक साधना बताई उस साधना को संपन्न करने के बाद मेरी सोच ही बदल गयी!मुझमें गजब का आत्मविश्वास आ गया!मेरे सोचे हुए सभी काम मेरे अनुसार हो जाते है और अब मेरी भावना है कि मै ईश्वर का अंश हूँ सर्वत्र व्यापी ईश्वर मुझ में ही विराजमान है!मै यह साधना लिखना नहीं चाहता था पर इस गुरु पूर्णिमा पर मेरी तरफ से यह साधना समस्त "गुरुतत्व" को श्रद्धा सुमन है!गुरु कोई भी हो लोकगुरु हो या पंथकगुरु " गुरुतत्व " सबमे सामान है!
विधि::-
गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह चार वजे उठ जाये और स्नान आदि कार्यो से निवृत होकर गुरु पूजन करे!गुरूजी की तस्वीर के आगे घी की ज्योत जलाये और गुरूजी को मिश्री का भोग लगाये!इसके बाद 51 माला गुरूजी के नाम की जपे,यह क्रिया शाम को भी करनी है मतलब शाम के समय गुरूजी का पूजन करने के बाद दोबारा 51 माला गुरूजी के नाम की जपनी है!उदहारण के लिए यदि आपके गुरुदेव का नाम है " सिद्ध रक्खा राम " तो आपको सिद्ध रक्खा राम सिद्ध रक्खा राम यह मन्त्र जपते रहना है और अपने गुरु को ईश्वर मानना है!ऐसा 11 दिन करे,बारवें दिन सुबह उसी प्रकार गुरु पूजन करे पर उस दिन आपको यह भावना करनी है कि मै गुरुदेव का ही अंश हूँ इसलिए मै ही सर्वशक्तिमान ईश्वर हूँ और फिर आपको 51 माला अपने नाम की जपनी है!यह क्रिया शाम को भी करनी है मतलब गुरूजी के पूजन के बाद 51 माला शाम को फिर अपने नाम की जपनी है!उदहारण के लिए जैसे मेरा नाम है " विक्रांत " तो मुझे 51 माला विक्रांत विक्रांत जपनी है!ऐसा 51 दिन करना है मतलब यह साधना आपको 62 दिन करनी है!वस्त्र सफ़ेद होने चाहिए माला कोई भी इस्तेमाल कर सकते है यदि रुद्राक्ष की हो तो अच्छा है!यह साधना पूर्वमुखी होकर या उत्तरमुखी होकर करे!मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह साधना आपके अंदर ईश्वरीय गुणों का विकास करेगी!
जय सदगुरुदेव!
3 comments
Please tell about Sabal singh bawri
Vikrant nath g kya is sadhana main brahmcharya jsrori hai grasthi logo ke liye
Shamsan sadna btaye gurudev
CommentComment